आत्माने तुं प्रयत्न वडे जाणीने तेमां वस, तो
मोक्षनगरीमां तारुं वास्तु थशे, ने अपूर्व मंगल प्रगटशे.
बनावीने जीव जन्ममरणमां रखडे छे; पुण्य–पापना भावोथी पार एवो जे चैतन्यभाव
ते आत्मिकधर्म छे; आत्माने ध्येय बनावीने आवा आत्मिकधर्मवडे जीवने सुखनो
अनुभव थाय छे एटले के मोक्ष थाय छे.
नथी पण संसारमां ज रखडे छे. समस्त रागथी पार एवी शुद्धचेतना ते आत्मानो धर्म
छे. आवा आत्मिकधर्मने धार्या वगर सर्व प्रकारनां पुण्य करे तोपण तेनुं फळ संसार छे,
ते स्वर्गमां जाय पण मोक्ष न पामे. पुण्यनी रुचिवाळो ते जीव बाह्य भोग–सामग्रीमां
लीन थईने संसारमां ज रखडे छे. भाई! रागना फळमां सुख क््यांथी होय? राग कांई
तारो आत्मिकधर्म नथी. राग तो परभाव छे. जिनशासनमां शुभरागने पण आत्मानो
धर्म नथी कह्यो, तेने पुण्य कह्युं छे ने तेनुं फळ संसार कह्युं छे. मोक्ष तो आत्माना शुद्ध
निर्मोह वीतराग परिणाम वडे ज थाय छे; ने ते परिणाम आत्माना स्वभावना
आश्रये थता होवाथी आत्मानो धर्म छे. पुण्य कांई आत्माना स्वभावना आश्रये थता
नथी, ते तो पराश्रित विभाव छे.