Atmadharma magazine - Ank 326
(Year 28 - Vir Nirvana Samvat 2497, A.D. 1971)
(Devanagari transliteration).

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:८: आत्मधर्म :मागशरः२४९७
शांतमूर्ति चेतनस्वभावना ज्ञान सिवाय जीव संसारमां बीजुं बधुं करी चुक््यो:
त्यागी पण थयो, शुभक्रियाओ पण करी, पण तेनाथी पार विकल्पातीत आनंदस्वरूप
निधान पोतामां भर्यां छे–ते लक्षमां न लीधुं. हवे हे भाई! वीतरागी देव–गुरु–शास्त्र
कहे छे ते वात लक्षमां लईने स्वानुभवगम्य कर.....अंदर तने
आनंद–रसना स्वादना घूंटडा आवशे. आत्मामां ज्ञानदीवडा प्रगटावीने आवा
निर्विकल्प आनंद–रसनां भोजन लेवा–ते खरी दीवाळी छे. आचार्यदेव मोक्षने साधवा
माटे आत्माने जाणवानो उपदेश आपे छे के–
एएण कारणेण य तं अप्पा सद्दहेह तिविहेण।
जेण य लभेह मोक्खं तं जाणिज्जह पयत्तेण।।८७।।
ते कारणे हे भव्य! जाणो यत्नथी निज–आत्मने,
त्रिविधे करो एनी ज श्रद्धा, मोक्ष–प्राप्ति कारणे. ८७
हे भव्य जीव! पुण्य–पाप रहित शुद्धचेतनारूप एवा ते आत्माने तमे
प्रयत्नपूर्वक जाणो अने त्रिविधे तेनी श्रद्धा करो के जेथी तमे मोक्षने पामशो.
आत्माने भूलीने बहारनां बीजां जाणपणा ए कांई मोक्षनुं कारण नथी, मोक्षने
माटे तो हे जीव! तुं सर्वप्रकारे उद्यम करीने आत्माने जाण अने तेनी श्रद्धा कर.
लाख बातकी बात यहै निश्चय उर लावो,
तोडी सकल जग–द्वंद–फंद निज आतम ध्यावो.
आत्मानो स्वभाव रागरूप नथी एटले राग वडे तेनी प्राप्ति थती नथी.
आत्मानो स्वभाव मोक्ष छे, (मोक्ष कह्यो निजशुद्धता) –तेनी प्राप्ति आत्माना श्रद्धा–
ज्ञान–अनुभव वडे ज थाय छे.
जुओ, आ मोक्षने पामवानी रीत! मोक्ष एटले आत्मानो स्वभाव धर्म; जे
भावथी मोक्ष पमाय ते ज आत्मिकधर्म; पुण्य अने पाप ए तो बंने संसारनुं ज कारण
छे. माटे आचार्यदेव कहे छे के हे भाई! आवा आत्माने प्रयत्नवडे जाणीने तेमां वस तो
मोक्षनगरीमां तारुं वास्तु थशे ने अपूर्व मंगळ प्रगटशे.