Atmadharma magazine - Ank 326
(Year 28 - Vir Nirvana Samvat 2497, A.D. 1971)
(Devanagari transliteration).

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:६: आत्मधर्म :मागशरः२४९७
आत्मामां त्रिकाळ छे, अने
(४) त्रणेकाळ अविच्छिन्न होवाथी सदा निकट परम चैतन्यनी श्रद्धा सहित छे;
–आ रीते आत्मा स्वभाव–अनंतचतुष्टयथी सहित छे, –सनाथ छे, एटले ते
मुक्तिसुंदरीनो नाथ छे. मोक्षरूपी जे सुंदर परिणति तेनो स्वामी आत्मा पोते छे; आवा
आत्माने सदाय भाववो, तेनी सन्मुख एकाग्र थवुं.
शक्तिरूप स्वभावचतुष्टयनो स्वीकार करतां पर्यायमां पण केवळज्ञानादि
अनंतचतुष्टय खीले छे. शक्ति त्रिकाळ छे पण तेनो स्वीकार करनारी तो निर्मळ
पर्याय छे. आत्माने भूलीने परनो आश्रय शोधनारी पर्याय तो अनाथ हती;
पोतानो साचो नाथ एवो चैतन्यस्वभाव तेने प्राप्त थयो न हतो; पण ज्यां ते
पर्याय अंतरमां वळी त्यां तेणे पोताना नाथ एवा चैतन्यस्वभावने पोतामां ज
देख्यो, ते सनाथ थई. स्वभावना आश्रये प्रगटेली जे शुद्ध चतुष्टयपरिणति तेनो
नाथ आत्मा पोते छे, ते सनाथ छे. हे भव्य! तारे तारा आत्मामां आनंदमय
मंगल प्रभात उगाडवुं होय तो तारा आत्माना स्वभावने ज पोतानो नाथ
बनावीने तेनो आश्रय ले.
लोको एम माने छे के आ जीवडो एवो छे के एने बहारनी उपाधि वगर
हालतुं नथी. पण भगवान तो कहे छे के अरे भाई! तारो जीवडो तो अनंत
आनंदनो भंडार छे, अनंत ज्ञान–आनंदथी भरपूर जीवडो छे, तेनुं भान करतां
ज्ञाननो दीवडो प्रगटे छे, चैतन्यनो प्रकाश ऊगे छे; ते ज आत्मानी दीवाळी अने
सुप्रभात छे.
अनंत ज्ञान–दर्शन–आनंद–वीर्यरूप स्व–राज जेमां प्राप्त थाय ते ज आत्मानुं
सुख–साम्राज्य छे. नवुं वर्ष सुखी निवडो एम भावना भावे छे, तेने बदले अंदरमां
अनंत चतुष्टयथी भरेला आत्मानी भावना करतां सादिअनंत सुख प्रगटे छे, तेने
आत्मामां शाश्वत सुखनुं नवुं वर्ष बेठुं; तेने आनंदमय चैतन्यसूर्य झगझगाट करतो
ऊग्यो, आनंदना वाजां वगाडतुं मंगल प्रभात ऊग्युं. ते आत्मा सवारना पहोरमां
स्मरण करवा योग्य प्रातःस्मरणीय छे.