Atmadharma magazine - Ank 326
(Year 28 - Vir Nirvana Samvat 2497, A.D. 1971)
(Devanagari transliteration).

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:मागशरः२४९७ आत्मधर्म :५:
के कदी अस्त न थाय, सादि–अनंत प्रकाशमान रहे एवुं आ सुप्रभात छे. जेमने आवुं
सुप्रभात खील्युं तेओ बीजाने माटे पण प्रातःस्मरणीय छे. आवा मंगलसुप्रभातनुं
वर्णन समयसार कळश २६८ मां कर्युं छे.
चैतन्यभूमिकाना आश्रयथी, एटले के परभावोथी भिन्न एवा ज्ञानस्वरूप
आत्माना अनुभवथी अनंतचतुष्टय सहित आत्मा खीली ऊठ्यो....पहेलांं
ज्ञानादि संकुचित हता ते हवे केवळज्ञानादिरूपे खीली गया. ते आत्मा पोते ज
शुद्धप्रकाशथी भरपूर सुप्रभात छे, सदाय आनंदमां ज सुस्थित छे. जेम
मंगलदिवसे वाजां वगाडे छे तेम आ आत्मा आनंदनां वाजां वगाडतो थको पोते
ज सुप्रभात–मंगलरूपे खीली ऊठ्यो. पोताना ज्ञान–आनंदमां सदाय अचळ
रहेवारूप अनंत वीर्य छे, क्षायिक ज्ञान–दर्शनरूप शुद्ध चैतन्यप्रकाश छे, ने
अतीन्द्रिय आनंद छे. –आवुं आत्मानुं सुप्रभात छे. सुप्रभातमां तो आवा
आत्मानी भावना करवा जेवी छे. बहारनी भावना तो अनंतकाळथी करी, तेमां
कांई नवुं नथी; आवा स्वभाव–चतुष्टयथी भरेला आत्मानी सन्मुख थईने तेनी
भावना करतां अपूर्व ज्ञान–आनंदसहित नवुं वर्ष बेसे छे ने मंगलप्रभात ऊगे
छे. त्यां अज्ञानना अंधारां टळी जाय छे.
ज्ञान अने आनंदनी अनंत लक्ष्मी आत्मामां भरपूर छे, ज्ञान–आनंदनो ते
अखूट निधान छे. बहारना निधान आत्मानां नथी तेम ज तेनो संयोग कायम
टकतो नथी. जे आत्मानां छे अने जे आत्मा साथे कायम टकनारां छे एवा ज्ञान–
आनंदमय अनंत निधान आत्मामां छे. आवा निजनिधानने स्वानुभव वडे प्रगट
करतो आत्मा अनंतचतुष्टयना सुप्रभातथी झळकी ऊठे छे. आवा चतुष्टयसहित
मोक्षदशा भगवाने प्रगट करी, तेओ मुक्तिसुंदरीना नाथ बन्या; अने दरेक आत्मा
स्वभावचतुष्टयथी भरेलो होवाथी मुक्तिसुंदरीनो नाथ छे; आवा आत्माने
भाववो; अनुभववो.
नियमसार गाथा १२मां शक्तिरूप चतुष्टय दरेक आत्मामां त्रिकाळ छे ते
बताव्युं छे; तेमां कहे छे के –केवा आत्माने भाववो? –के जेनो बीजो कोई नाथ नथी, ने
जे पोते मुक्तिसुंदरीनो नाथ छे, तथा स्वभावचतुष्टयथी सहित–सनाथ छे, एवा
आत्माने भाववो; तेना अनुभववडे अनंतचतुष्टयरूपी सुप्रभात खीली जाय छे.
केवळज्ञानरूपी आ सुप्रभात जगतने मंगळरूप छे अने वंदनीय छे.