Atmadharma magazine - Ank 326
(Year 28 - Vir Nirvana Samvat 2497, A.D. 1971)
(Devanagari transliteration).

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:४: आत्मधर्म :मागशरः२४९७
ज्ञानप्रकाशथी खीलेलुं आनंदमय सुप्रभात
(कारतक सुद एकमना प्रवचनमांथी)
* * * * *
‘तमारुं नवुं वर्ष सुखी नीवडो. ’ –केटलो काळ? –सादि
अनंतकाळ आनंदरूप रहो. अनंत ज्ञान–दर्शन–सुख–वीर्य एवा
चतुष्टयरूपी जे मंगलप्रभात आत्मामां खील्युं ते सदाकाळ
रहेनारुं सुप्रभात छे. नूतन वर्षना मंगलप्रभातनी सर्वोत्तम
बोणीरूपे गुरुदेव जगतनी सर्वोत्तम वस्तु एवो अनंत
चतुष्टयथी भरेलो आत्मा बतावे छे. शक्तिपणे तारा आत्मामां
स्वभावचतुष्टय विद्यमान छे, तेनी सन्मुखतावडे सम्यग्दर्शनादि
सुप्रभात ऊगे छे ने तेना फळमां केवळज्ञानादि अनंत चतुष्टय
प्रगट थाय छे. अहो, जे आत्मामां आवो आनंदमय चैतन्यसूर्य
झगझगाट करतो ऊग्यो ते प्रातःस्मरणीय छे.
* * * * *
पोताना ज्ञानस्वभावरूप निजभूमिकानो आश्रय लईने जे जीव आत्मानो
अनुभव करे छे तेने अनंतचतुष्टय खीले छे एटले ज्ञानप्रकाशथी भरेलुं आनंदमय
सुप्रभात तेने प्रकाशे छे. आ ज्ञानप्रकाश चैतन्यतेजथी झगझगाट करे छे. अहो!
आवा अनंतचतुष्टयस्वरूपे आत्मा प्रगटे ते ज अपूर्व सुप्रभात छे. अनंत दर्शन–
ज्ञान–आनंद–वीर्यरूप चतुष्टयथी ते भरेलुं छे.
शक्तिस्वभावे आत्मा अनंतचतुष्टयथी सदा भरेलो ज छे; स्वरूप–प्रत्यक्ष
एवो तेनो स्वभाव छे. आव स्वरूपमां अंतर्मुख थईने निर्विकल्प भावथी पोते
पोताने प्रत्यक्ष अनुभवे त्यारे ते चतुष्टय प्रगट थाय छे. आवा चतुष्टयनो स्वामी
आत्मा छे ते धर्मचक्रवर्ती छे; चार गतिनो अंत करीने अनंत चतुष्टयने प्राप्त करे
एवी तेनी ताकात छे, अने ते ज आत्मानुं साचुं साम्राज्य छे.
लौकिक सुप्रभात तो सवारे ऊगे ने सांजे पाछुं अस्त थई जाय, पण आ
चैतन्यना केवळज्ञानादि चतुष्टयरूप जे आनंदमय सुप्रभात खील्युं ते तो एवुं
खील्युं