Atmadharma magazine - Ank 326
(Year 28 - Vir Nirvana Samvat 2497, A.D. 1971)
(Devanagari transliteration).

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:मागशरः२४९७ आत्मधर्म :३:
आत्मा पोते अनंत आनंदनो नाथ, पोतामां बिराजी रह्यो छे, तेने ज ध्येय
बनावतां सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्ररूप धर्म थाय छे. जेम मोटाना आश्रये बेठेलाने
चिंता रहेती नथी. तेम हे सर्वज्ञ परमात्मा! में तमने ओळखीने तमारो आश्रय लीधो,
एटले के अंतरमां आपे कहेला मारा स्वभावनो आश्रय लीधो त्यां हवे अमने कोई
चिंता नथी, भवनो हवे अभाव थयो, सिद्धपद तो अमारा स्वभावमां भर्युं छे;–ने
एवा मोटा स्वभावने अनुभवमां लीधो तो हवे कोई चिंता क््यां रही? जे मेळववानुं
हतुं ते तो अमारा स्वभावमां ज छे, –पछी चिन्ता शेनी? अने ज्यां आवो मोटो
स्वभाव पोतामां देखीने तेनो आश्रय लीधो त्यां परने, रागने ने नानी एवी क्षणिक
पर्यायनी सामे कोण जुए? –तेनो आश्रय कोण ल्ये? भाई, बहारना जडवैभवमां तो
तारुं कांई नथी; तारो अनंत आत्मवैभव तारामां ज छे. तेने तुं जाण...तेनो अनुभव
करीने अपूर्व आनंदनी कमाणी कर. अरे जीव! तने कमाणी करतां आवडती नथी. खरी
कमाणीनुं स्थान तो तारा आत्मामां छे. बहारमां कांई कमाणी नथी, तेमां तो
अशुद्धभावने लीधे नुकशान छे, दुःख छे, खोटनो धंधो छे. साची कमाणीनो धंधो तो ए
छे के उपयोगना वेपारने पोताना आत्मस्वभावमां जोडवो, –तेमां अनंत आनंदना
वैभवनी कमाणीनो अपूर्व लाभ छे.
आचार्यभगवान कहे छे के हे भाई! तुं आत्मामां सम्यक्त्वादि भावशुद्धि प्रगट
कर. भावशुद्धि थतां स्व–परनुं साचुं ज्ञान थाय छे; द्रव्य–गुण–पर्यायनुं के देव–गुरु–
शास्त्रनुं साचुं ज्ञान शुद्धभाव वडे ज थाय छे. अशुभ के शुभरागनो भाव ते तो
मलिन–अशुद्धभाव छे, तेना वडे कांई साचुं स्वरूप ओळखातुं नथी. पोताना स्वरूपनी
सामे जुए त्यारे पोतानुं साचुं ज्ञान थाय, अने भगवाननी साची ओळखाण पण
त्यारे ज थाय. पोतानी सामे जोया वगर भगवाननी पण साची ओळखाण थाय नहीं.
भगवाननी आज्ञा एवी छे के हे जीव! तुं अमारी सामे नहि पण तारा स्वभावनी
सामे जो...तारा स्वभावनो आश्रय ले त्यारे ज तने अमारी ओळखाण थशे.....ने त्यारे
ज अमारी आज्ञानुं खरूं पालन थशे.
महावीर भगवान पोते आवा स्वभावना आश्रयवडे मोक्ष पाम्या...ने एवी ज
आज्ञा तेमणे करी भगवाने एम नथी कह्युं के तुं परनो आश्रय करजे! भगवाने तो
एम कह्युं छे के तुं स्वद्रव्यनो आश्रय करजे ने परनो आश्रय छोडजे; केमके स्वद्रव्यना ज
आश्रये मोक्ष छे, ने परद्रव्यना आश्रये संसार छे. –आवो स्वद्रव्यना आश्रयरूप
तीर्थंकरोनो मार्ग छे.