Atmadharma magazine - Ank 326
(Year 28 - Vir Nirvana Samvat 2497, A.D. 1971)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 15 of 45

background image
:१२: आत्मधर्म :मागशरः२४९७
भ ग वा न पा र स ना थ
* लेखांक (प) गतांकथी चालु *
भगवान पारसनाथना दशभवनुं वर्णन
आप वांची रह्या छो. मरूभूति अने कमठ बे
भाई; मरूभूति मरीने हाथी थयो ने
सम्यग्दर्शन पाम्यो; सर्प करडवाथी तेनुं मृत्य
थयुं. पछी अग्निवेग–मुनिना भवमां अजगर
तेने खाई गयो; वज्रनाभी चक्रवर्तीना भवमां
भीले बाणथी तेने वींधी नांख्या. पछी
ग्रैवेयकमां जईने आपणा चारित्रनायक
आनंदराजा तरीके अवतर्या छे ने
अष्टाहनिकामां जिनेन्द्रदेवनी पूजानो मोटो
उत्सव करावीने मुनिराजनो उपदेश सांभळे छे.
–हवे आगळ वांचो.
श्री मुनिराजना उपदेशमां जिनेन्द्र भगवानना दर्शननो महिमा सांभळीने
आनंदराजा वगेरे बधा जीवो पण घणा राजी थया; घणा जीवोए दररोज भगवानना
दर्शन करवानी प्रतिज्ञा करी; अने अरिहंत भगवान जेवा आत्माना शुद्ध स्वरूपनो
विचार करवा लाग्या. पछी भावपूर्वक मुनिराजनी स्तुति–वंदना करीने सौ पोते
पोताना स्थाने गया. मुनिराज पण विहार करता करता भोजन समये
अयोध्यानगरीमां पधार्या. आनंद राजाए नवधाभक्तिपूर्वक मुनिराजने आहारदान
दीधुं. आहारदान बाद मुनिराजे कह्युं के–हे राजन्! हवे तमारे बे ज भव बाकी छे. आ
भवमां तीर्थंकरप्रकृति बांधीने आगामी भवमां तमे भरतक्षेत्रमां २३मा तीर्थंकर
थशो......ने सम्मेदशिखरथी मोक्ष पामशो. ते सांभळीने राजा घणो ज आनंदित थयो.
तेनुं नाम पण ‘आनंद’ हतुं ने भावथी पण ते आनंदित हतो.