Atmadharma magazine - Ank 326
(Year 28 - Vir Nirvana Samvat 2497, A.D. 1971)
(Devanagari transliteration).

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:मागशरः२४९७ आत्मधर्म :१३:
हवे, श्री मुनिराजे उपदेशमां त्रणलोकना जिनप्रतिमाओनुं पण वर्णन कर्युं हतुं.
सूर्यविमानमां पण शाश्वत जिनबिंब छे ने ज्योतिषी देवो तेनी पूजा–भक्ति करे छे,
तेनुं अद्भुत वर्णन सांभळीने राजा पोताना महेलमांथी तेने नमस्कार करवा लाग्यो,
अने अयोध्यानगरीमां पण तेवी ज रचना करवानुं तेने मन थयुं. राज्यना उत्तम
कारीगरोने बोलावीने सूर्यविमान जेवुं ज एक सुंदर विमान बनाव्युं; अने हीरा माणेक
रत्न जडेला ते विमानमां सुंदर जिनप्रतिमानी स्थापना करी. आ विमाननी अने तेमां
बिराजमान प्रतिमानी आश्चर्यकारी शोभा देखीने आनंदराजाने आनंदनो पार न रह्यो.
तेओ हंमेशां सवार–सांज तेनी पूजा करवा लाग्या. आ रीते राजाने सूर्यविमानस्थिति
जिनबिंबनी पूजा करता देखीने तेना उपर विश्वासने कारणे लोको पण देखादेखीथी
सूर्यविमानने नमस्कार करवा लाग्या. राजा तो सूर्यविमानने नहीं पण तेमां स्थित
जिनबिंबने नमस्कार करतो हतो;–पण जेम बाह्य जीवो निश्चयने जाण्या वगर
व्यवहारने भजवा लागे छे तेम अन्यमति लोको पण जिनबिंबने बदले सूर्यने पूजवा
लाग्या.
आनंद महाराजा अनेक प्रकारे धर्मनुं आराधन करी रह्या छे, तेने विश्वास छे के
जिनसद्रश मारा आत्मानुं चिंतन करीने हुं पण जिन थईश.....आवी भावना पूर्वक
घणां वर्षो वीती गयां; एक दिवस ते राजाए पोताना माथामां सफेद वाळ देख्या, अने
तरत ज तेनुं हृदय वैराग्यथी कंपी ऊठ्युं के अरे! युवानीना लाखो वर्षो वीती गया ने
वृद्धावस्था तो आववा लागी; आ सफेदवाळ मृत्युराजानो संदेशो लईने आव्यो छे के हे
जीव! हवे जलदी चारित्रदशाने धारण करीने आत्म–कल्याण कर. माटे हवे मारे
आत्महितमां घडीनोय विलंब करवा जेवो नथी. आजे ज आ संसारनो सर्व परिग्रह
छोडीने, हुं शुद्धोपयोगी मुनि थईश अने उपयोगस्वरूप मारा आत्मामां एकाग्र थईने
चारित्रदशा प्रगट करीश–आवा द्रढ निश्चयपूर्वक तेओ वैराग्यने पुष्ट करनारी बार
भावना चिंतववा लाग्या.
(१) आ शरीरादि संयोग अने रागादि परभावो अधु्रव छे; मारो उपयोगस्वरूप
शुद्धआत्मा ज मारे माटे धु्रव छे, ते ज मारुं स्व छे, ने तेना ज ध्यानथी सुख छे.
(२) मृत्युना मुखमां पडेला के रोगादिथी घेरायेला जीवने पोतानी ज्ञानचेतना सिवाय
बीजुं कोई ज शरण नथी, अरिहंत–सिद्ध–साधु अने धर्म–एवी दशारूप जे