नथी. जे स्वयं सुखी छे तेने बीजाना शरणनुं शुं काम छे?
कोई बाह्य भावो छे–अशुभ के शुभ, ते बधाय परभावो संसार छे, दुःखमय
छे, चारगतिनां कारण छे. परभावनुं सेवन ते संसार, तेनाथी छूटवा
आत्माना शुद्धस्वरूपनी भावना करवी.
एकत्व स्वभावने भूलीने, रागद्वेषना भाव वडे जीव दुःखी छे; तेमज देहादि
पदार्थो भिन्न होवा छतां तेनी साथे एकत्व मानी–मानीने मोहथी जीव महा
दुःखी थई रह्यो छे. रागमां एकतारूप परिणमन ते मिथ्यात्व छे,
निजस्वरूपमां ज एकतारूप परिणमन ते सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्र छे.
मुनिओ आवी एकत्वभावनामां तत्पर होय छे.
सिवाय जे कोई रागादि बाह्य भावो छे ते बधाय माराथी अन्य छे. –आवा
भेदज्ञानरूप भावना ते अन्यत्व भावना छे.
मलिन करनारां होवाथी अशुची छे, तेने छोडीने उपयोगस्वरूप पवित्र
आत्मानी भावना करवी.
आत्माना उपयोगमां कर्मनो प्रवेश नथी, तेथी ते निरास्रव छे. आवा
उपयोगनो अनुभव करतां आस्रवो छूटी जाय छे.
ज तेने जोडवो तेनुं नाम संवर छे; भेदज्ञान वडे ज आवो संवर थाय छे
अने ते महान आनंददायक छे.