Atmadharma magazine - Ank 326
(Year 28 - Vir Nirvana Samvat 2497, A.D. 1971)
(Devanagari transliteration).

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:१४: आत्मधर्म :मागशरः२४९७
वीतरागभाव ते ज शरण छे, बीजुं बधुंय अशरण छे. पोताना शुद्धआत्मानुं ज शरण
लईने जेणे वीतरागभाव प्रगट कर्यो तेने बीजा कोईनुं शरण लेवुं पडतुं
नथी. जे स्वयं सुखी छे तेने बीजाना शरणनुं शुं काम छे?
(३) पोताना स्वभावनी साधना वडे ज सिद्धपद सधाय छे; एना सिवाय जे
कोई बाह्य भावो छे–अशुभ के शुभ, ते बधाय परभावो संसार छे, दुःखमय
छे, चारगतिनां कारण छे. परभावनुं सेवन ते संसार, तेनाथी छूटवा
आत्माना शुद्धस्वरूपनी भावना करवी.
(४) पोताना स्वभाव साथे एकत्व साधतां परमसुख पमाय छे. पण पोताना
एकत्व स्वभावने भूलीने, रागद्वेषना भाव वडे जीव दुःखी छे; तेमज देहादि
पदार्थो भिन्न होवा छतां तेनी साथे एकत्व मानी–मानीने मोहथी जीव महा
दुःखी थई रह्यो छे. रागमां एकतारूप परिणमन ते मिथ्यात्व छे,
निजस्वरूपमां ज एकतारूप परिणमन ते सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्र छे.
मुनिओ आवी एकत्वभावनामां तत्पर होय छे.
(प) प्रज्ञा वडे अनुभवमां आवतो जे उपयोगस्वरूप आत्मा, ते ज हुं छुं, ते
सिवाय जे कोई रागादि बाह्य भावो छे ते बधाय माराथी अन्य छे. –आवा
भेदज्ञानरूप भावना ते अन्यत्व भावना छे.
(६) खरेखर बाह्यवस्तु अशुची नथी, पण मिथ्यात्वादि भावो ज आत्माने
मलिन करनारां होवाथी अशुची छे, तेने छोडीने उपयोगस्वरूप पवित्र
आत्मानी भावना करवी.
(७) आत्माने मलिन करनारां ने दुःख देनारां जे अज्ञानभावो छे ते आस्रव छे;
आत्माना उपयोगमां कर्मनो प्रवेश नथी, तेथी ते निरास्रव छे. आवा
उपयोगनो अनुभव करतां आस्रवो छूटी जाय छे.
(८) उपयोगने क्यांय बहार परभावमां न भमाववो ने पोताना आत्मस्वरूपमां
ज तेने जोडवो तेनुं नाम संवर छे; भेदज्ञान वडे ज आवो संवर थाय छे
अने ते महान आनंददायक छे.
(९) शुद्धतानी धारा वडे कर्ममेलने विशेषपणे धोई नाखवो ते निर्जरा छे.
सम्यक्त्व पूर्वकना तपथी घणी निर्जरा थाय छे, ने ते मोक्षनुं कारण छे.