Atmadharma magazine - Ank 326
(Year 28 - Vir Nirvana Samvat 2497, A.D. 1971)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 18 of 45

background image
:मागशरः२४९७ आत्मधर्म :१५:
(१०) जेनो कोई कर्ता नथी, जेनो कदी नाश नथी एवो आ लोक छे; ते अनंत
अलोकनी वच्चे कोई पण जातना अवलंबन वगर सदाय रहेलो छे; जीवनो
स्वभाव पण नीरालंबी छे. लोकमां अनंता जीवो छे, तेओ आत्मज्ञान वगर
त्रण लोकमां जन्म–मरण करीने रखडे छे ने दुःखी थाय छे. लोकमां सौथी जुदो
ने लोकने जाणनारो ज्ञानस्वरूप आत्मा हुं छुं–एवुं ज्ञान करे तो लोकमां
परिभ्रमण मटे, अने जीव पोते सिद्धभगवान थईने लोकाग्रे जईने वसे.
(११) संसारमां भमतां जीवने बधुं सुलभ छे, पुण्य अने स्वर्ग पण सुलभ छे,
दुर्लभ तो एकमात्र रत्नत्रयरूपबोधि ज छे. अने ते बोधि जीवने महा सुख
देनार छे. आवी दुर्लभ–बोधि मने केम प्राप्त थाय? तेवी भावना करीने,
तेनो उद्यम करवा जेवो छे.
(१२) वस्तुनो धर्म एटले के वस्तुनो स्वभाव शुं छे? तेनुं चिंतन करवुं जोईए.
जीवनो स्वभाव एटले के जीवनो धर्म तो चेतना छे; ते चेतनामां राग–द्वेष
नथी. रागद्वेषभावो ते खरेखर जीवनो धर्म नथी. आवा चेतनस्वभावरूप
धर्मने ओळखीने, सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्ररूप वीतरागधर्मनी अथवा
उत्तमक्षमादि दशधर्मनी उपासना करवी. ते धर्म ज जीवने सुख अने मोक्ष
आपे छे.
आ बार भावनाओ वैराग्यनी जनेता छे, तेना चिंतन वडे वैराग्य पुष्ट थाय छे.
आनंदमहाराजाए आवी बार भावनाओनुं चिंतन कर्युं अने परम वैराग्यपूर्वक
सागरदत्तगुरुनी समीप मुनिदीक्षा लीधी...मुनि थईने शुद्धोपयोगवडे आत्मध्यानमां
एकाग्र थया. अतीन्द्रिय आनंदनां समुद्रमां गरकाव थया.....अहा! एमनो आत्मा
रत्नत्रयनां तेजथी झळकी ऊठ्यो. एमनी वीतरागता आश्चर्य उपजावती हती. आत्मिक
साधनामां तेओ एवा रत हता के बारप्रकारनां तप तो तेमने सहेजे थई जतां हतां;
मुख्यपणे तेओ ध्यान अने स्वाध्यायमां ज मग्न रहेता. आनंदना वेदनमां आहारनी
ईच्छा सहेजे छूटी जती एटले कष्ट वगर तेमने उपवास थई जता हता. क््यारेक आहार
करे तोपण रसनी ईच्छा वगर, अमुक ज वस्तुओ अने ते पण भूख करतां अल्प ज
लेतां; एकान्तस्थानमां वन–जंगलमां वसता; शरीरनुं ममत्व तेमणे छोडी दीधुं हतुं, अल्प
पण दोष के प्रमाद थई जाय तो सरळचित्ते प्रायश्चित्त करता; रत्नत्रयधारी गुरुओ प्रत्ये
सेवा–विनय अने वात्सल्यसहित वर्तता; गमे तेवी ठंडी गरमी के वर्षामां पण तेओ कदी
आत्मध्यान चुकता नहीं. –आम बार प्रकारनां तप सहित चारित्रने आराधता हता.