Atmadharma magazine - Ank 326
(Year 28 - Vir Nirvana Samvat 2497, A.D. 1971)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 20 of 45

background image
:मागशरः२४९७ आत्मधर्म :१७:
होय तेम उत्तम क्षमादि दशधर्मो तेमने खीली नीकळ्‌या हता. –आवा आनंदमुनिराजे
दर्शनविशुद्धिथी मांडीने रत्नत्रयधर्मप्रत्येना परम वात्सल्य सुधीनी सोळ भावनाओ वडे
तीर्थंकरनामकर्मनी प्रकृति बांधी. बधाय तीर्थंकरो पूर्वभवमां आवी उत्तम भावनाओ
भावे छे. एक तरफथी पुण्यनो रस वधतो हतो, ने बीजी तरफथी चैतन्य–अनुभव वडे
वीतरागी शांतरस पण वधतो जतो हतो. शिवपुर पहोंचवा माटे तेमने वचमां एक ज
भव बाकी हतो; हवे संसारसंबंधी कोई ईच्छा तेमने रही न हती, देहथी पण तेओ
साव विरक्त हता.
ते मुनिराज एक वखत वनमां
अडगपणे ध्यान करता हता.....बहारनुं
लक्ष छोडीने निजस्वरूपना अवलोकनमां
तेओ एकाग्र हता. तेमना सर्वप्रदेशे
अपूर्व आनंदरसना फूवारा छूटता हता.
एवामां त्यां एक सिंह आव्यो......तेनी
भयंकर गर्जनाथी आखुं वन धू्रजी
ऊठ्युं.....वनना पशुओ बीकना मार्या
भागवा लाग्या. छलांग पर छलांग
मारतो ते सिंह वनमां चारेकोर घूमतो
हतो. आ सिंह ते बीजो कोई नहि पण
आपणो जाणीतो कमठनो ज जीव छे. तेनी नजर ध्यानमां बेठेला आनंदमुनि उपर पडी
अने क्रोधथी मोटी त्राड पाडीने ते मुनि तरफ दोडयो......मुनिराज भाग्या नहीं,
भयभीत थया नहीं, ए तो निर्भयपणे ध्यानमां ज बेसी रह्या. सिंहे छलांग मारीने
तेमनुं गळुं मोढामां पकडयुं ने पंजाना नखथी तेमना शरीरने फाडी खाधुं. –अरे! एने
क््यां भान हतुं के हुं अत्यारे जेना शरीरने खाउं छुं ते ज एक वखत गुरु थईने आ
संसारमांथी मारो उद्धार करशे! सिंह शरीरने खातो हतो त्यारे मुनिराज तो पोताना
उत्कृष्ट क्षमाभावमां ज रह्या, तेमणे सिंह उपर जराय क्रोध न कर्यो......वीतराग मार्गथी
जरापण न डग्या. वाह! धन्य मुनिराज चतुर्विध आराधनानी अखंडता सहित प्राण
तजीने तेओ आनतस्वर्गमां ईन्द्र थया. सिंह कू्रर भावथी मरीने पाछो नरकमां गयो.
* (९) आनंदमुनि आनत स्वर्गमां, अने सिंह नरकमां *
देहलोकना १६ स्वर्गमांथी १३मुं आनतस्वर्ग छे; स्वर्गनी शोभा अनेरी छे;