:मागशरः२४९७ आत्मधर्म :१९:
भावशुद्धिवंत जीव आराधनाने पामे छे
अहो! आत्मानी आराधनाना पंथ रागथी न्यारा
छे....वीतरागी संतोना मारगडा दुनियाथी बहु आघा
छे. सुखमय आराधना भावशुद्धि वडे पमाय छे, रागवडे
ते नथी पमाती. दुनियाथी दूर, जगतथी जुदा अंदरना
स्वभावमां घूसी जाय त्यारे वीतरागी संतोना मार्गनी
आराधना पमाय छे.
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जेने आत्माना आनंदनो अनुभव होय ते तो वारंवार अंदर ते आनंदनुं
चिंतन करे, पण जेने आत्माना आनंदनी खबर नथी, विषयोमां जेणे सुख मान्युं छे ते
तो ते विषयोने ज चिंतवे छे, विषयोना चिंतनमां एकक्षण पण तेने शांति नथी. अरे
भाई! आ शरीर ते तो जड–माटी हाडकां–चामडानुं ढींगलुं छे, तेमां क््यां तारुं सुख छे?
आत्मा तो आनंदनो पर्वत छे, तेनो अनुभव कर.
आचार्यदेव कहे छे के अहो! आत्माना शुद्धभाव सहित मुनिवरो चार
आराधना पामीने मोक्षना परमसुखने अनुभवे छे; पण जे जीव बाह्यथी तो मुनि थयो
होवा छतां अंदरमां सम्यक्त्वादि भावशुद्धि वगरनो छे ते तो दीर्घ संसारमां भमतो थको
दुःखी ज थाय छे–
भावसदिहो य मुणिणो पावइ आराहणा चउक्कं च।
भावरहिदो य मुणिवर भमइ चिरं दीहसंसारे।।९९।।
शुद्धभावयुत मुनि पामता आराधना–चउविधने,
पण भावरहित जे मुनि ते तो दीर्घसंसारे भमे. ९९
आत्मानुं भान करीने तेनी आराधना करनारा मुनिओ तो मोक्षसुखने पामे छे;
पण ज्यां आत्मानुं भान नथी त्यां एक्केय आराधना होती नथी, ते तो संसारमां भमे
छे, सम्यग्द्रष्टि–गृहस्थ होय तोपण ते मोक्षमार्गनो आराधक छे; अने मिथ्याद्रष्टिजीव
मुनि थयो होय तोपण ते संसारी ज छे, ते मोक्षमार्गी नथी.