Atmadharma magazine - Ank 326
(Year 28 - Vir Nirvana Samvat 2497, A.D. 1971)
(Devanagari transliteration).

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:२०: आत्मधर्म :मागशरः२४९७
प्रश्न:– तेने शुभभाव तो होय छे?
उत्तर:– शुभभाव होय छे पण भावशुद्धि तेने नथी; शुभभावने कांई भावशुद्धि कहेता
नथी, अने शुभभाव कांई मोक्षनुं साधन नथी. रागथी पार शुद्ध आत्मानी
अनुभूतिरूप निश्चय सम्यक्त्वादि भाव, ते ज भावशुद्धि छे, ने एवी
भावशुद्धि होय त्यां ज दर्शन–ज्ञान–चारित्र–तप एवी चतुर्विध–आराधना
होय छे; तेना फळमां अनंतचतुष्टय सहित अरिहंतपद तथा सिद्धपद प्रगटे छे.
सम्यग्दर्शन वगर तो ज्ञान–चारित्र के तप एक्केय आराधना होती नथी.
मिथ्यात्वनुं फळ संसार, ने सम्यक्त्वनुं फळ मोक्ष छे. अज्ञानीओ मात्र
शुभरागने भावशुद्धि मानी ल्ये छे ने तेनाथी आराधना थवानुं माने छे; पण
भाई! अनंतवार शुभराग करवा छतां आत्मानी आराधना तो तने जराय
न थई, संसारभ्रमण ज रह्युं. केमके अशुभ अने शुभ बंने भावो अशुद्ध छे,
परभाव छे, संसारनुं कारण छे. सम्यक्त्वादि शुद्धभाव तो स्वभावना आश्रये
छे, राग वगरना छे, ते मोक्षनुं कारण छे. हजी तो आत्मानो शुद्धभाव कोने
कहेवाय तेनी पण जेने खबर न होय तेने आराधना केवी? तेने तो एकलुं
दुःख छे. तेथी कह्युं के–
मुनिव्रतधार अनंतवार ग्रीवक उपजायो,
पै निज आतमज्ञान बिन सुख लेश न पायो.
आत्माना अनुभव वगर शुभरागथी मुनिव्रत पाळवा छतां लेश पण सुख न
पाम्यो, –एनो अर्थ ए थयो के शुभराग करीने पण जीव दुःख ज पाम्यो, सम्यग्दर्शन
वगर आत्मानी आराधना नथी, ने आत्मानी आराधना वगर सुख नथी. तो सुख
कई रीते थाय? के आत्मा पोते सुखथी भरेलो मोटो पहाड छे, आखो सुखनो ज पहाड
छे; ते सुखस्वभावना श्रद्धा–ज्ञान–अनुभव करतां आत्मा पोते सुखरूप परिणमी जाय
छे. –आवी सुखमय आराधना भावशुद्धिवडे पमाय छे, राग वडे ते नथी पमाती.
अहो! आत्मानी आराधनाना पंथ रागथी न्यारा छे. वीतरागी संतोना मारगडा
दुनियाथी बहु आघा छे. दुनियाथी दूर एटले के जगतथी जुदा अंदरना स्वभावमां घूसी
जाय त्यारे वीतरागी संतोना मार्गनी आराधना पमाय छे. जेने आनंदस्वरूप आत्माने
साधवो होय तेने बहारनां पुण्य–पापना भावनो रस ऊडी जाय छे. रागनो रस रहे ने
आत्मानो आनंद पण सधाय–एम एक साथे बे वात नहीं रहे, केमके आत्माना
आनंदनी जात रागथी तद्न जुदी छे. शुभराग ते कांई आराधना नथी. ज्यां रागनो
प्रेम छे त्यां