Atmadharma magazine - Ank 326
(Year 28 - Vir Nirvana Samvat 2497, A.D. 1971)
(Devanagari transliteration).

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:मागशरः२४९७ आत्मधर्म :२१:
चैतन्यनी आराधना नथी; एनुं फळ तो संसार छे. आम जाणीने हे जीव! तुं राग अने
आत्मानी भिन्नताना अनुभव वडे भावशुद्धि प्रगट कर. भावशुद्धि ते ज आराधना छे,
ते ज मोक्षनुं कारण छे; तेना वडे कल्याणनी परंपरा पमाय छे, मोक्षसुख पमाय छे.
भावश्रमणो पामता कल्याण–माळा, सुखने;
ने द्रव्योश्रमणो कुनर–तिर्यंच–देवगतिनां दुःखने. (१००)
साधारण लोकोने नरकनां ज दुःखमां दुःख लागे छे, पण हे भाई, आत्मानी
शुद्धि वगर संसारनी चारे गतिमां (देवलोकमां पण) एकलुं दुःख ज छे; आत्माना
अशुद्धभाव ते ज दुःख छे; मोहरहित शुद्धभाव वडे ज ते दुःखथी जीव छूटे छे ने सुखने
पामे छे.
ज्यां आत्मानुं ज्ञान नथी, आत्मानो शुद्धस्वभाव शुं, ने तेनाथी विरुद्ध परभाव
शुं? तेनुं पृथक्करण नथी, त्यां जीवने भावशुद्धि क््यांथी थाय? ज्ञानमां रागने भेळवीने
अशुद्धभावने ज अज्ञानी अनुभवे छे ने ते ज दुख छे;–पछी भले देव हो के मनुष्य हो,
अशुद्धभावथी ते दुःखी ज छे. अने नरकमां पण जीव जो आत्माने ओळखीने शुद्धभाव
करे तो तेने अतीन्द्रिय सुखनो अनुभव थाय छे. सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्र कहो के
भावशुद्धि कहो, ते मोक्षसुखनुं कारण छे. चारे आराधना भावशुद्धिमां समाय छे. माटे हे
जीव! प्रथम तुं भावने जाण.....प्रयत्नवडे आत्माने जाणीने भावशुद्धि प्रगट कर.
आत्मानी आवी आराधनावडे मोक्षसुख पमाशे.
(भावप्राभृत गाथा ९९–१००)
दर्शनपुता मानवतिलका
ओज्सतेजोविद्या वीर्ययशोवृद्धिविजयविभवसनाथाः।
महाकुला महार्था मानवतिलका भवन्ति दर्शनपुताः।।३६।।
सम्यग्दर्शन वडे जे पवित्र छे ते पुरुष समस्त मनुष्योमां तिलक समान
शोभे छे; तथा पराक्रम, तेज–प्रताप, विद्या, बळ, उज्वळ, यश, वृद्धि, विजय
अने वैभव ए बधानी अतिशयतानो ते स्वामी थाय छे. तथा महान कूळनो
स्वामी थाय छे अने महान धर्म, अर्थ, काम अने महा–मोक्ष ए चार प्रकारना
पुरुषार्थनो ते स्वामी थाय छे.
(–समन्तभद्र स्वामी)