आत्मानी भिन्नताना अनुभव वडे भावशुद्धि प्रगट कर. भावशुद्धि ते ज आराधना छे,
ते ज मोक्षनुं कारण छे; तेना वडे कल्याणनी परंपरा पमाय छे, मोक्षसुख पमाय छे.
ने द्रव्योश्रमणो कुनर–तिर्यंच–देवगतिनां दुःखने. (१००)
अशुद्धभाव ते ज दुःख छे; मोहरहित शुद्धभाव वडे ज ते दुःखथी जीव छूटे छे ने सुखने
पामे छे.
अशुद्धभावने ज अज्ञानी अनुभवे छे ने ते ज दुख छे;–पछी भले देव हो के मनुष्य हो,
अशुद्धभावथी ते दुःखी ज छे. अने नरकमां पण जीव जो आत्माने ओळखीने शुद्धभाव
करे तो तेने अतीन्द्रिय सुखनो अनुभव थाय छे. सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्र कहो के
भावशुद्धि कहो, ते मोक्षसुखनुं कारण छे. चारे आराधना भावशुद्धिमां समाय छे. माटे हे
जीव! प्रथम तुं भावने जाण.....प्रयत्नवडे आत्माने जाणीने भावशुद्धि प्रगट कर.
आत्मानी आवी आराधनावडे मोक्षसुख पमाशे.
महाकुला महार्था मानवतिलका भवन्ति दर्शनपुताः।।३६।।
अने वैभव ए बधानी अतिशयतानो ते स्वामी थाय छे. तथा महान कूळनो
स्वामी थाय छे अने महान धर्म, अर्थ, काम अने महा–मोक्ष ए चार प्रकारना
पुरुषार्थनो ते स्वामी थाय छे.