एकसाथे परिणमे छे, ते बताववा आचार्यदेवे ४७ शक्ति वर्णवी छे. सौथी पहेली
जीवनशक्ति छे–जे चैतन्यप्राणने धारण करनारी छे. ज्ञानस्वरूप आत्मा पोताना
चैतन्यप्राणने धारण करीने जीवे छे एवी तेनी जीवत्वशक्ति छे. ज्ञानना अनुभवमां
आवुं जीवत्व पण भेगुं ज छे. ज्ञानना अनुभवमां साथे राग नथी आवतो, रागथी
ज्ञाननी साथे ज छे. ज्ञानस्वरूप आत्माना अनुभवमां अनंतगुणनो अनुभव
समाय छे.
आवा जीवनवाळो आत्मा ज्ञानलक्षणवडे लक्षित थाय छे. अनंतशक्ति अने तेनी
निर्मळपर्यायो जेमां एक साथे वर्ते छे एवो आत्मा ज्ञानलक्षणनुं लक्ष्य छे, तेमां
रागादि अशुद्धभाव आवता नथी. रागादिभावोने अने ज्ञानलक्षणने तो अत्यंत
भिन्नता छे, अने क्रमरूप तथा अक्रमरूप एवा अनंत निर्मळभावो (गुण–पर्यायो)
साथे ज्ञानलक्षणने अभिन्नपणुं छे. राग भाववडे आत्मा लक्षित थई शके नहीं,
अने ज्ञानवडे स्व–आत्माने लक्षित करतां तेमां राग आवे नहीं. राग ते कांई
आत्मानुं जीवन नथी; आत्मानुं चैतन्यजीवन छे, ते ज्ञानलक्षणथी लक्षित छे. पर्याय
द्रव्य उपर जतां आवो आत्मा अनुभवमां आवे छे. –आवा अनुभवमां वीतरागता
छे, आनंद छे, प्रभुता छे, स्वच्छता छे, स्वरूपनी रचना छे; तेमां आत्मा साथे
एकता छे ने परथी भिन्नतारूप उपेक्षा छे; आ रीते पोताना अनंता निर्मळधर्मो
सहित आत्मा परिणमे छे.