Atmadharma magazine - Ank 326
(Year 28 - Vir Nirvana Samvat 2497, A.D. 1971)
(Devanagari transliteration).

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:२२: आत्मधर्म :मागशरः२४९७
ज्ञ त् न्जी
(ज्ञानपांचम: लाभपांचमना रोज जीवत्वशक्तिना प्रवचनमांथी)
चैतन्यभावरूप जीवत्वने जाणता जीव जगत्पूज्य पदवी पामे छे
ज्ञानस्वरूप आत्मा पोते पोताना ज्ञानलक्षणवडे ज्यारे पोताना आत्मद्रव्यने
लक्ष्यरूपे अनुभवे छे त्यारे ते ज्ञाननी अनुभूतिमां अनंत शक्तिना निर्मळभावो
एकसाथे परिणमे छे, ते बताववा आचार्यदेवे ४७ शक्ति वर्णवी छे. सौथी पहेली
जीवनशक्ति छे–जे चैतन्यप्राणने धारण करनारी छे. ज्ञानस्वरूप आत्मा पोताना
चैतन्यप्राणने धारण करीने जीवे छे एवी तेनी जीवत्वशक्ति छे. ज्ञानना अनुभवमां
आवुं जीवत्व पण भेगुं ज छे. ज्ञानना अनुभवमां साथे राग नथी आवतो, रागथी
तो ते भिन्न छे; पण जीवत्व–सुख–श्रद्धा वगेरे अनंत शक्तिनुं निर्मळपरिणमन ते
ज्ञाननी साथे ज छे. ज्ञानस्वरूप आत्माना अनुभवमां अनंतगुणनो अनुभव
समाय छे.
ज्ञानलक्षणवडे लक्ष्यरूप एवा पोताना आत्माने अनुभवनार ज्ञानी जाणे छे
के मारुं जीवत्व चैतन्यमय भावप्राणथी छे, चैतन्यभावथी सदा जीवनारो हुं छुं. –
आवा जीवनवाळो आत्मा ज्ञानलक्षणवडे लक्षित थाय छे. अनंतशक्ति अने तेनी
निर्मळपर्यायो जेमां एक साथे वर्ते छे एवो आत्मा ज्ञानलक्षणनुं लक्ष्य छे, तेमां
रागादि अशुद्धभाव आवता नथी. रागादिभावोने अने ज्ञानलक्षणने तो अत्यंत
भिन्नता छे, अने क्रमरूप तथा अक्रमरूप एवा अनंत निर्मळभावो (गुण–पर्यायो)
साथे ज्ञानलक्षणने अभिन्नपणुं छे. राग भाववडे आत्मा लक्षित थई शके नहीं,
अने ज्ञानवडे स्व–आत्माने लक्षित करतां तेमां राग आवे नहीं. राग ते कांई
आत्मानुं जीवन नथी; आत्मानुं चैतन्यजीवन छे, ते ज्ञानलक्षणथी लक्षित छे. पर्याय
ते आत्मानो स्व–अंश छे, तेना वडे आखो आत्मा लक्षित थाय छे. पर्यायनी द्रष्टि
द्रव्य उपर जतां आवो आत्मा अनुभवमां आवे छे. –आवा अनुभवमां वीतरागता
छे, आनंद छे, प्रभुता छे, स्वच्छता छे, स्वरूपनी रचना छे; तेमां आत्मा साथे
एकता छे ने परथी भिन्नतारूप उपेक्षा छे; आ रीते पोताना अनंता निर्मळधर्मो
सहित आत्मा परिणमे छे.