Atmadharma magazine - Ank 326
(Year 28 - Vir Nirvana Samvat 2497, A.D. 1971)
(Devanagari transliteration).

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:मागशरः२४९७ आत्मधर्म :२३:
राग होय तो आत्मानुं जीवन टके, के शरीर होय तो आत्मानुं जीवन टके एम
नथी; ज्ञानमय आत्मा पोते स्वभावथी ज चैतन्यभावरूप जीवत्ववाळो छे.
चैतन्यप्राणवडे सदाय जीवनारो आत्मा पोते ‘जीवंतस्वामी’ छे. हे जीवो! आवा
चैतन्यजीवनथी तमे जीवो छो.....ने बीजा जीवो पण आवा चैतन्यजीवनवाळा छे–एम
तमे जाणो. बहारमां लोको ‘जीवो अने जीववा दो’ एम कहे छे ते तो बहारनी वात छे;
भाई! शरीरनुं जीवन ए कांई तारुं जीवन नथी. शरीरना अस्तित्वथी जे पोतानुं
जीवन माने छे तेने खरूं जीवतां आवडतुं नथी ने बीजा जीवोना जीवनने पण ते
जाणतो नथी. चैतन्यना अस्तित्ववाळुं आत्मानुं जीवन छे. अहीं आत्मानुं अलौकिक
जीवन बताव्युं छे. आत्माने ईंद्रियादि जडप्राण साथे मैत्री नथी–एकता नथी, तेनाथी
आत्मा जीवतो नथी; आत्माने पोताना चैतन्यप्राण साथे सदाय मित्रता छे–एकता छे,
ते ज आत्मानुं जीवन छे. शरीरथी ने रागथी हुं जीवुं छुं–एम माननारने साचुं
चैतन्यजीवन हणाय छे. चैतन्यभावरूप जीवत्व छे ते अनंतगुण सहित आत्माने
जीवाडे छे, ने आवा जीवत्वने जाणतां जीव जगत्पूज्य पदवी पामे छे.
‘सर्वार्थसिद्धि’ मां पूज्यपादस्वामी कहे छे–
प्रश्नः– इह पुण्यपापग्रहणं कर्त्तव्यम्।
उत्तरः– न कर्त्तव्यम्, आस्रवे बन्धे च अन्तर्भावात्।
संसारस्य प्रधानहेतुःआस्रवो बन्धश्च।
मोक्षस्य प्रधानहेतुः संवरो निर्जरा च।
तत्त्वार्थश्रद्धान करवा माटे (चोथा सूत्रमां) साततत्त्वो कह्यां, त्यां प्रश्न थाय छे के
साततत्त्वोनी साथे पुण्य–पापनुं पण ग्रहण करीने नव तत्त्वो कहेवां जोईए!
उत्तरमां आचार्यदेव कहे छे के एनुं जुदुं ग्रहण करवानी जरूर नथी, केमके आस्रव
अने बंधतत्त्वमां ते समाई जाय छे.
पछी वधु स्पष्टता करतां कहे छे के–
संसारना प्रधान हेतु आस्रव ने बंध छे.
मोक्षना प्रधान हेतु संवर ने निर्जरा छे.
आ रीते–एक तो, पापनी साथे पुण्य ते पण आस्रव ने बंध छे, अने बीजुं ते
संसारनो हेतु छे, ते मोक्षनो हेतु नथी, –एम सूत्रकार भगवंतोए स्पष्ट समजाव्युं छे.
पुण्यनो समावेश आस्रव ने बंधमां छे, पुण्यनो समावेश संवर के निर्जरामां नथी.