Atmadharma magazine - Ank 326
(Year 28 - Vir Nirvana Samvat 2497, A.D. 1971)
(Devanagari transliteration).

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:मागशरः२४९७ आत्मधर्म :२५:
भाई! सुखरूप थवुं ते तो तारी पोतानी शक्ति छे. सुखगुण ने सुखपर्याय,
एम अनंत गुणो ने तेनी निर्मळपर्यायो, एवा अक्रम तथा क्रमरूप अनंतधर्मोना
समुदायरूप आत्मा छे; पण रागादिभावो तेमां अभूतार्थ छे, तेने आत्मा कहेता नथी.
हवे आत्मा सुखगुणरूप त्रिकाळ छे, ते सुखपर्यायरूपे परिणमे छे. त्रणकाळना
सुखने ते ज्ञानवडे एकसाथे जाणी ल्ये खरो, पण सुखनुं वेदन तो ते–ते पर्यायमां वर्ते
तेटलुं ज छे भले एकेक समये परिपूर्ण सुखने वेदे, पण त्रणकाळनुं सुख एक साथे नथी
वेदातुं, सुखपर्यायो एक पछी एक परिणमे छे, ते–ते समयनी वर्तमान पर्यायना सुखनुं
वेदन थाय छे. ते सुखना वेदनमां रागना वेदननो अभाव छे एटले तेमां ते अभूतार्थ
छे. भगवान आत्माने रागवडे के शरीरवडे ओळखवो ते असद्भुत छे, तेना वडे
आत्मानी खरी ओळखाण नथी. आत्माना सुखवडे के आत्माना ज्ञानवडे तेनी खरी
ओळखाण थाय छे. माता–पितावडे शरीरना रंग वडे, समवसरणादि संयोग वडे
भगवानना आत्मानी खरी ओळखाण थती नथी, तेमना केवळज्ञानादि वडे ज तेमनी
खरी ओळखाण थाय छे; आनंदस्वरूप आत्मा छे, सुखस्वरूप आत्मा छे–एम तेनी
साची ओळखाण थाय छे; पण देहवाळो आत्मा, रागवाळो आत्मा एम तेनी
ओळखाण आपवी ते तो कलंक जेवुं छे, अभूतार्थ छे–असत्य छे. तारे सुखनां भोजन
करवा होय, आनंदना जमण जमवा होय तो अंदर भूतार्थरूप सुखस्वभावमां
अपरिमित आनंद भर्यो छे तेमां जा......अनंतकाळ सुधी अनंत आनंद तेमां पाकया ज
करे एवुं तारुं चैतन्यक्षेत्र छे; आनंदनी खाण तारामां ज भरी छे. –हवे आनंद माटे
तारे बीजे क््यां जवुं छे? सुख तो तारुं स्वरूप ज छे. ते स्वरूपना अनुभवथी सुखरूप
परिणमन थवुं ते ज धर्म छे. धर्म एटले ज सुख.
सुखने जे शोधे छे ते शोधनारो पोते ज सुखनी खाण छे. आत्मा पोतानुं सुख
बहारमां शोधे ते तो, जेम सूर्य पोताना प्रकाशने बीजे शोधवा जाय–एना जेवुं छे. जेम
सूर्य पोते आकाशमां निरालंबीपणे उष्णता अने प्रकाशनो पूंज छे, तेम आ निरालंबी
आत्मा पोते स्वभावथी ज ज्ञान ने सुख छे. पोते ज सुख छे–ए भूलीने अज्ञानी
परमांथी सुख आववानुं माने छे. पण–‘सुख प्राप्त करतां सुख टळे छे लेश ए लक्षे
लहो’ –अरे! बहारमां सुख मानतां अंतरनो सुखस्वभाव भूलाई जाय छे. हे भाई!
तुं विचार करीने आ वात लक्षमां तो ले के, अनंतकाळथी बहारमां सुख शोधी–शोधीने
थाक््यो छतां तने सुखनो छांटोय केम न मळ्‌यो? –सुखनी