Atmadharma magazine - Ank 326
(Year 28 - Vir Nirvana Samvat 2497, A.D. 1971)
(Devanagari transliteration).

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:२६: आत्मधर्म :मागशरः२४९७
हवा पण केम न आवी? ......जेम हरणीयां मृगजळने पाणी मानीने दोडे छे; अरे
हरणिया! तुं दोडी दोडीने थाके छे छतां ठंडी हवा पण केम नथी आवती? –क््यांथी
आवे? त्यां पाणी होय तो ठंडी हवा आवे ने? त्यां पाणी तो नथी पण धगधगती रेती
छे. तेम धगधगती रेती जेवी आकुळतावाळा जे बाह्यविषयो तेमां अज्ञानीसुख मानीने
त्यां ज उपयोगने दोडावे छे, पण अनादिकाळ वीत्यो छतां तेने सुख नथी मळतुं.–
क््यांथी मळे? विषयोमां सुख होय तो मळेने? त्यां तो आकुळता छे; सुखनुं निधान तो
अंतरमां छे, तेने लक्षमां लेतां सुखनी ठंडी लहेर आवे छे. कोई पण बीजी चीजना
अवलंबन वगर स्वयमेव आत्मा पोते सुख छे. एकलुं सुख नहीं पण एवा अनंत
स्वभावोनो स्वाद आत्माना अनुभवमां एक साथे वेदाय छे. अनेकान्त वडे आत्मानुं
स्वरूप जाणनार धर्मात्माने स्वानुभवमां आवुं वेदन थाय छे; ते धर्म छे, ते मोक्षमार्ग
छे.
* * * * *
जेनामां सुख छे–तेने जाणतां सुख थाय छे.
जेनामां सुख नथी तेने जाणतां सुख थतुं नथी.
* * * * *
सुखथी भरपूर चैतन्यलक्ष्मीने लक्षमां ले
दुनियाना वैभव करतां आत्मानो वैभव
जुदी जातनो छे. अरे, संसारमां लक्ष्मी माटे
जीवो केटला दगा–प्रपंच ने राग–द्वेष करे छे!
तेमां जीवन गुमावे छे ने पाप बांधे छे.
भाई, तारा स्वघरनी चैतन्यलक्ष्मी महान छे
तेथी संभाळ करने! तेमां क््यांय दगा–प्रपंच
नथी, राग–द्वेष नथी, कोईनी जरूर नथी,
छतां ते महा आनंदरूप छे. बहारनी लक्ष्मी
मळे तोपण तेमांथी सुख मळतुं नथी. आ
चैतन्यलक्ष्मी पोते महा आनंदरूप छे. आवो
अपार वैभव आत्मामां पोतामां भर्यो छे. –
एने लक्षमां लेतां सुख छे.