Atmadharma magazine - Ank 326
(Year 28 - Vir Nirvana Samvat 2497, A.D. 1971)
(Devanagari transliteration).

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:मागशरः२४९७ आत्मधर्म :३३:
आशाथी (वेदांतनी जेम) पोतानी पर्यायने कोई छोडी देवा मांगे तो तेने ज्ञानतत्त्व
अनुभवमां नहीं आवे. रागथी तो जुदुं ज्ञानतत्त्व प्राप्त थाय एटले के अनुभवमां
आवे; पण पर्यायथी जुदुं ज्ञानतत्त्व अनुभवमां न आवे. नित्य–अनित्यपणा सहित
ज्ञानतत्त्वनो अनुभव करतां आनंद सहित आत्मा अनुभवाय छे, तेमां परभावनो
अभाव छे पण पर्यायनो अभाव नथी. अहा! आचार्यभगवाने अनुभवना उमळका
आ समयसारमां ऊतारीने भव्यजीवो उपर महान करुणा करी छे.
भगवान महावीर मोक्ष पधार्या.....त्यारे देवोए मोटो महोत्सव कर्यो हतो; एने
तो २४९६ वर्ष थया ने आजे (आसोवद अमासे) २४९७ मुं वर्ष बेठुं, त्रणवर्ष पछी
अढी हजारमुं वर्ष बेसशे ने भारतमां तेनो मोटो उत्सव उजवाशे. ते भगवान महावीरे
मोक्ष जता पहेलां अरिहंतपदेथी आवा अनेकान्ततत्त्वनो उपदेश आप्यो हतो.
ज्ञानस्वरूप आत्मानुं सत्य स्वरूप बतावीने भगवाने जगतना जीवोने साचुं जीवन
आप्युं; केमके अज्ञानथी पोताना आत्मानी नास्तिकता हती–आत्मानो अनुभव न
हतो, एटले भावमरण हतुं, तेने बदले अनेकान्तवडे आत्मानुं साचुं स्वरूप समजतां
आत्माना आनंदना अनुभवरूप जीवन प्रगटे छे. आ रीते अनेकान्तद्वारा ज्ञानस्वरूप
समजावीने भगवान महावीरे जीवोने भावमरणथी छोडाव्या ने चैतन्यनुं साचुं जीवन
आप्युं.
–एवा महावीर भगवानना मोक्षनो आजे दिवस छे. भगवाननी “ वाणी
त्रणलोकमां जयवंत छे; अहो! जिनवाणी धन्य छे के जेणे जगतने आत्मानुं स्वरूप
समजाव्युं:–
धन्य दिव्यवाणी कारने रे......
जेणे प्रगट कर्यो आत्मदेव......
जिनवाणी जयवंत त्रणलोकमां रे......
अनेकान्तमय आत्मतत्त्वने जिनवाणीए प्रकाशित कर्यो छे; आवुं अलौकिक
वस्तुस्वरूप बीजुं कोई समजावी शके नहीं. कोईए धु्रवने छोड्युं, तो कोईए पर्यायने
छोडी, उत्पाद–व्यय–धु्रवरूप तत्त्व समयेसमये पोताथी परिपूर्ण वर्ती रह्युं छे–ते तो
अनेकान्तमय जिनवाणी ज प्रकाशे छे. भाई! तारा ज्ञानमां उत्पाद–व्ययरूप पर्याय ते
कांई भ्रम नथी; उत्पाद–व्यय तो मोक्षमां सिद्धभगवाननेय थाय छे, तेमने रागद्वेष नथी
पण नवीनवी आनंदपर्याय तो थाय ज छे, पोतानी अवस्थाथी जुदी