निरपेक्ष छे.
तेमां पण तेओ एकबीजानां कारण नथी. ज्ञानगुणथी आत्मा स्वयं
ज्ञानपरिणतिरूप परिणम्यो छे, ने श्रद्धागुणथी आत्मा स्वयं सम्यग्दर्शन–
परिणतिरूप परिणम्यो छे. रागादि व्यवहार हो, श्रवण हो, पण ते कांई ज्ञाननुं
कारण नथी, श्रद्धानुं कारण नथी; कोई बीजानी अपेक्षा राख्या वगर ज्ञानपरिणति
अंतरमां आत्माने अनुभवमां ल्ये त्यारे ज ज्ञानादि साचां थाय छे; कोई गुणनी
परिणति बीजा कारणनी अपेक्षा राखती नथी. बस, तुं अनंतगुणसंपन्न पोताना
आत्मानी ज सामे जो. ते ज पोतानी ताकातथी कारण–कार्यरूप थईने
निर्मळपर्यायपणे उल्लसशे, एटले के परिणमशे.
होय? –के वीतरागतामां? वीतरागता ते ज सुख
छे, तेने जीवे कदी जाण्युं नथी. जेणे रागमां अने
पुण्यमां सुख मान्युं तेने मोक्षनी श्रद्धा नथी. मोक्ष
तो अतीन्द्रिय ज्ञानमय छे, रागमय नथी. अरिहंत
छे. स्वपरना भेदज्ञानपूर्वक वीतराग विज्ञान वडे ज
ते सुख अनुभवाय छे.