Atmadharma magazine - Ank 326
(Year 28 - Vir Nirvana Samvat 2497, A.D. 1971)
(Devanagari transliteration).

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:मागशरः२४९७ आत्मधर्म :३५:
ज्ञान के विकल्प ते आत्माना ज्ञाननुं कारण थतुं नथी. ज्ञान पोते अन्य कारणोथी
निरपेक्ष छे.
सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्ररूप मोक्षमार्ग, ते आत्मपरिणाम छे, ते अन्यथी
निरपेक्ष छे. एम आत्माना अनंतगुणो छे ते बधाय अन्यथी निरपेक्ष छे. अन्यथी
तो निरपेक्ष छे, रागथी पण निरपेक्ष छे; ने श्रद्धा–ज्ञानादिनुं एकसाथे कार्य थाय छे.
तेमां पण तेओ एकबीजानां कारण नथी. ज्ञानगुणथी आत्मा स्वयं
ज्ञानपरिणतिरूप परिणम्यो छे, ने श्रद्धागुणथी आत्मा स्वयं सम्यग्दर्शन–
परिणतिरूप परिणम्यो छे. रागादि व्यवहार हो, श्रवण हो, पण ते कांई ज्ञाननुं
कारण नथी, श्रद्धानुं कारण नथी; कोई बीजानी अपेक्षा राख्या वगर ज्ञानपरिणति
अंतरमां आत्माने अनुभवमां ल्ये त्यारे ज ज्ञानादि साचां थाय छे; कोई गुणनी
परिणति बीजा कारणनी अपेक्षा राखती नथी. बस, तुं अनंतगुणसंपन्न पोताना
आत्मानी ज सामे जो. ते ज पोतानी ताकातथी कारण–कार्यरूप थईने
निर्मळपर्यायपणे उल्लसशे, एटले के परिणमशे.
तेथी कहे छे के जेणे आत्माना कारण–कार्यने जाण्या तेणे समस्त जिनशासनने
जाण्युं.
साचुं सुख
जीव सुख चाहे छे......पण ते रागमां ने
संयोगमां सुखने शोधे छे. भाई, सुख तो रागमां
होय? –के वीतरागतामां? वीतरागता ते ज सुख
छे, तेने जीवे कदी जाण्युं नथी. जेणे रागमां अने
पुण्यमां सुख मान्युं तेने मोक्षनी श्रद्धा नथी. मोक्ष
तो अतीन्द्रिय ज्ञानमय छे, रागमय नथी. अरिहंत
अने सिद्ध भगवंतोना सुखने धर्मी जीवो ज जाणे
छे. स्वपरना भेदज्ञानपूर्वक वीतराग विज्ञान वडे ज
ते सुख अनुभवाय छे.