पधार्या.....जिनमंदिरमां आदिनाथ भगवानना दर्शन
करीने, पछी स्वागत बाद मंगल प्रवचनमां आत्मानी
जीवत्वशक्तिने याद करीने कह्युं के ज्ञानानंदस्वरूप आत्मानी
सन्मुख थईने जे रागथी भिन्न निर्मळ ज्ञान–आनंदमय
छे. पांच दिवस सुधी प्रवचनमां समयसारनी गा. २७२ थी
२७प वंचाणी हती, अने घणा जिज्ञासुओ लाभ लेता हता.
प्रवचनमांथी केटलोक सार अहीं आप्यो छे.
मिथ्यात्वनुं सेवन थाय छे. आचार्यदेव समजावे छे के हे भाई! तारो स्वभाव
ताराथी परिपूर्ण छे, तारा ज आश्रये तारी मुक्ति थाय छे; कोई बीजानो आश्रय
करवा जतां तो अशुभ के शुभरागथी बंधन अने दुःख ज थाय छे; मुक्तिनो मार्ग
परना आश्रये नथी, मुक्ति स्वद्रव्यने आश्रित छे.
पापना रागभावो पण अशुची छे, तेमां चैतन्यनो आनंद नथी. ते पराश्रित
भावो मुक्तिनुं कारण थई शकता नथी; मुक्तिनो मार्ग चैतन्यमय स्वद्रव्यने
आश्रित छे. शुद्ध आत्माने जेओ ओळखता नथी, तेनी सन्मुख थईने साचां श्रद्धा–
ज्ञान चारित्र प्रगट करता नथी, अने पराश्रित शुभभावरूप व्यवहार श्रद्धा–ज्ञान–
चारित्रने मोक्षनुं कारण समजीने सेवे छे ते मिथ्याद्रष्टि छे. भाई! तुं स्व–