Atmadharma magazine - Ank 326
(Year 28 - Vir Nirvana Samvat 2497, A.D. 1971)
(Devanagari transliteration).

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:३६: आत्मधर्म :मागशरः२४९७
अमदावादमां आत्माश्रित मोक्षमार्गनुं वर्णन
*
सोनगढथी मंगलप्रस्थान करीने कारतक वद आठमना
रोज पू. श्री कानजीस्वामी अमदावाद शहेर
पधार्या.....जिनमंदिरमां आदिनाथ भगवानना दर्शन
करीने, पछी स्वागत बाद मंगल प्रवचनमां आत्मानी
जीवत्वशक्तिने याद करीने कह्युं के ज्ञानानंदस्वरूप आत्मानी
सन्मुख थईने जे रागथी भिन्न निर्मळ ज्ञान–आनंदमय
दशा प्रगटे ते मांगलिक छे अने ते ज आत्मानुं साचुं जीवन
छे. पांच दिवस सुधी प्रवचनमां समयसारनी गा. २७२ थी
२७प वंचाणी हती, अने घणा जिज्ञासुओ लाभ लेता हता.
प्रवचनमांथी केटलोक सार अहीं आप्यो छे.
भगवान आत्मा देहथी भिन्न ज्ञानानंदस्वरूप वस्तु छे; ते पोताने भूलीने
पोताना सिवाय कोई पण बीजा पदार्थना आश्रये सुख थवानुं माने, तो तेमां
मिथ्यात्वनुं सेवन थाय छे. आचार्यदेव समजावे छे के हे भाई! तारो स्वभाव
ताराथी परिपूर्ण छे, तारा ज आश्रये तारी मुक्ति थाय छे; कोई बीजानो आश्रय
करवा जतां तो अशुभ के शुभरागथी बंधन अने दुःख ज थाय छे; मुक्तिनो मार्ग
परना आश्रये नथी, मुक्ति स्वद्रव्यने आश्रित छे.
तुं जीव छो! तो तारुं जीवपणुं केवुं छे? तारुं जीवन केवुं छे? तेनी आ वात
छे. तुं पोते अतीन्द्रिय आनंदरसनुं पूर छो. शरीर तो जड छे, ने अंदरना पुण्य–
पापना रागभावो पण अशुची छे, तेमां चैतन्यनो आनंद नथी. ते पराश्रित
भावो मुक्तिनुं कारण थई शकता नथी; मुक्तिनो मार्ग चैतन्यमय स्वद्रव्यने
आश्रित छे. शुद्ध आत्माने जेओ ओळखता नथी, तेनी सन्मुख थईने साचां श्रद्धा–
ज्ञान चारित्र प्रगट करता नथी, अने पराश्रित शुभभावरूप व्यवहार श्रद्धा–ज्ञान–
चारित्रने मोक्षनुं कारण समजीने सेवे छे ते मिथ्याद्रष्टि छे. भाई! तुं स्व–