भिन्नताने ओळखीने स्वद्रव्यना आश्रयथी ज सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्ररूप
मोक्षमार्ग प्रगटे छे.
पूर्वभवनुं ज्ञान थयुं हतुं, आपणे त्यां राजुलबेनने पण अढी वर्षनी वये पूर्व
भवमां जुनागढमां गीता हती तेनुं जातिस्मरणज्ञान थयुं छे. एथी पण विशेष
चारभवनुं ज्ञान सोनगढमां चंपाबेनने छे; एमनी वात ऊंडी छे. आत्मानी
अपार ताकात छे, तेने ओळखीने तेमां रमणता करतां अपूर्व आनंद
अनुभवाय छे. श्रीमद् राजचंद्रजीए १७ वर्षनी वय पहेलां जे १२प बोधवचनो
लख्यां छे, तेमां स्वद्रव्यनो आश्रय करवाना ने परद्रव्यनो आश्रय छोडवाना
दशबोल बहु सरस छे.
प्रथम तो कहे छे के–
* स्वद्रव्यना व्यापक त्वराथी थाओ.
* स्वद्रव्यना धारक त्वराथी थाओ.
* स्वद्रव्यना रमक त्वराथी थाओ.
* स्वद्रव्यना ग्राहक त्वराथी थाओ.
* स्वद्रव्यनी रक्षकता उपर लक्ष राखो.