Atmadharma magazine - Ank 326
(Year 28 - Vir Nirvana Samvat 2497, A.D. 1971)
(Devanagari transliteration).

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:मागशरः२४९७ आत्मधर्म :३७:
द्रव्यने जाणीने तेनो आश्रय कर. तो ज मोक्षमार्ग प्रगटे. स्वद्रव्य अने परद्रव्यनी
भिन्नताने ओळखीने स्वद्रव्यना आश्रयथी ज सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्ररूप
मोक्षमार्ग प्रगटे छे.
जुओ, आवी वात श्रीमद् राजचंद्रजीए नानी उमरमां (सत्तर वर्षनी
वय पहेलांं) पण लखी छे. सात वर्षनी उमरे तो तेमने जातिस्मरणमां
पूर्वभवनुं ज्ञान थयुं हतुं, आपणे त्यां राजुलबेनने पण अढी वर्षनी वये पूर्व
भवमां जुनागढमां गीता हती तेनुं जातिस्मरणज्ञान थयुं छे. एथी पण विशेष
चारभवनुं ज्ञान सोनगढमां चंपाबेनने छे; एमनी वात ऊंडी छे. आत्मानी
अपार ताकात छे, तेने ओळखीने तेमां रमणता करतां अपूर्व आनंद
अनुभवाय छे. श्रीमद् राजचंद्रजीए १७ वर्षनी वय पहेलां जे १२प बोधवचनो
लख्यां छे, तेमां स्वद्रव्यनो आश्रय करवाना ने परद्रव्यनो आश्रय छोडवाना
दशबोल बहु सरस छे.
निश्चयनो आश्रय करो ने व्यवहारनो आश्रय छोडो–आवो जे समयसारनो
आशय छे ते आशय श्रीमद् राजचंद्रए ते नीचेना दश बोलमां बताव्यो छे. तेमां
प्रथम तो कहे छे के–
‘स्वद्रव्य अने अन्यद्रव्यने भिन्न भिन्न जुओ’
ए प्रमाणे बंनेने भिन्न जाणीने शुं करवुं? ते माटे दश बोलमां सरस
खुलासो लख्यो छे:–
* स्वद्रव्यना रक्षक त्वराथी थाओ.
* स्वद्रव्यना व्यापक त्वराथी थाओ.
* स्वद्रव्यना धारक त्वराथी थाओ.
* स्वद्रव्यना रमक त्वराथी थाओ.
* स्वद्रव्यना ग्राहक त्वराथी थाओ.
* स्वद्रव्यनी रक्षकता उपर लक्ष राखो.
एटले के निश्चयनो आश्रय करो.....त्वराथी करो......पछी करशुं एम