Atmadharma magazine - Ank 326
(Year 28 - Vir Nirvana Samvat 2497, A.D. 1971)
(Devanagari transliteration).

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वार्षिक वीर सं. २४९७
लवाजम मागशर
चार रूपिया
.
* वर्ष २८ : अंक २ *
मंगल–सुप्रभाते–
आत्मिक ऋद्धि–बुद्धि अने बळनी भावना
निज स्वभावनी ऋद्धि प्राप्त थजो,
स्वसंवेदननी उत्तम बुद्धि हजो,
आत्माना श्रद्धा–ज्ञाननुं अनंत बळ हजो.
दीवाळीना दिवसोमां गुरुदेवे कह्युं के आत्मा
ज्ञान–आनंदनी ऋद्धिथी भरेलो छे; आत्माना आनंद
वगेरे निज वैभवने भूलीने अज्ञानी जीवो बाह्य
वैभवनी, धननी, शरीरना बळनी भावना भावे
छे, ए रीते दीवाळीने ज दिवसे बाह्यभावना वडे
अज्ञानी पोताना भावने बगाडे छे, तेने बदले
दीवाळीना दिवसमां तो आत्माना स्वभावनी
भावना भाववी जोईए के मारा स्वभावनी अनंत
आनंद वगेरे चेतन्यऋद्धि मने प्राप्त हो; आत्माना
स्वसंवेदन माटेनी उत्तम बुद्धि मने प्रगटो, अने
वीतरागी श्रद्धा–ज्ञान–आनंदथी भरपूर अनंत
आत्मबळ मने प्रगटो. –आम पोताना स्वभावनी
भावना करीने परिणतिने अंतरमां वाळे तो साची
दीवाळी प्रगटे....ने अपूर्वे चैतन्यऋद्धिनो लाभ मळे.
स्वभावनी भावनाथी अनंत चतुष्टय प्रगट करीने
आत्मा झळकी ऊठे ते मंगल सुप्रभात छे,