Atmadharma magazine - Ank 326
(Year 28 - Vir Nirvana Samvat 2497, A.D. 1971)
(Devanagari transliteration).

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स्वभावमां नियतरूप वीतरागी मोक्षमार्ग
* * * * *
मोक्षने माटे वीतरागचारित्रने भाववुं, रागने नहीं
शुभ के अशुभ रागरूप जे परचारित्र छे ते बंधनुं ज कारण छे, एटले ते
बंधमार्ग ज छे, मोक्षमार्ग नथी–एम भगवान जिनेन्द्रदेवे कह्युं छे.
–ते बंधमार्गथी केम छूटाय?
–तो कहे छे के, कोई पण प्रकारे सम्यग्ज्ञान–ज्योति प्रगट करीने जीवे परसमयने
छोडवो ने स्वसमयने ग्रहण करवो. तेनाथी कर्मबंधन छूटे छे. सम्यग्दर्शनमां पण राग
वगरना स्वसमयनुं ग्रहण छे ने रागरूप परसमयनो त्याग छे.
जीवस्वभाव ज्ञानदर्शनमय छे; ते स्वभावमां नियत चारित्र ते मोक्षमार्ग छे.
सम्यग्दर्शन पण जीवस्वभावमां नियत छे, सम्यग्ज्ञान पण जीव स्वभावमां नियत छे,
सम्यक्चारित्र पण जीवस्वभावमां नियत छे. आ रीते स्वभावमां तन्मात्रपणे वर्तवुं ते
चारित्र छे. वीतरागतामां वर्तवुं ते चारित्र छे अने अशुभ के शुभ रागमां वर्तवुं ते
चारित्रथी भ्रष्टपणुं छे. मोक्षना कारणरूप चारित्र ते शुभरागथी भिन्न छे. लोको
शुभरागने चारित्र अने मोक्षमार्ग मानी रह्या छे ते अनादिनी भ्रमणा छे. सम्यग्द्रष्टिने
के मुनिने पण जे शुभराग छे ते कांई मोक्षना कारणरूप चारित्र नथी, ते तो आस्रवना
कारणरूप परचारित्र छे; एटले ते बंधमार्ग ज छे, मोक्षमार्ग नथी–एम जिनभगवाने
कह्युं छे.
बंधनुं जे कारण छे ते मोक्षनुं कारण कदी न होय. शुभरागने बंधनुं कारण कहेवुं
ने तेने वळी मोक्षमार्ग मानवो ए वात परस्पर विरुद्ध छे. तेने उपचारथी मोक्षमार्ग
कह्यो होय तो ते खरेखर मोक्षमार्ग नथी एम जाणवुं.
अरेरे, मोक्षना कारणरूप शुद्ध वीतरागचारित्रने जाण्या वगर, रागने मोक्षनुं
साधन मानीने अनंतकाळ अत्यारसुधी मिथ्यात्व अने रागादिमां ज लीनपणे
वीत्यो,.....हवे तो स्वभावमां नियत एवा वीतरागचारित्रनी ज निरंतर भावना करवा
जेवी छे.