Atmadharma magazine - Ank 327
(Year 28 - Vir Nirvana Samvat 2497, A.D. 1971)
(Devanagari transliteration).

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: पोष : २४९७ आत्मधर्म : ७ :
निश्चय–व्यवहार संबंधी झगडा उकली जाय ने आत्माने सम्यग्दर्शनादिनी
प्राप्ति थाय एवा भावो आ गाथामां भर्या छे. व्यवहारना जे अनेक प्रकारना
विकल्पो, तेमां छेल्लामां छेल्लो सौथी सूक्ष्म व्यवहार– ‘ज्ञान–दर्शन–चारित्रस्वरूप
आत्मा’ एवा गुण–गुणीभेदरूप छे. आवा गुण–गुणी भेदरूप व्यवहार पण
आश्रय करवा जेवो नथी, केमके तेना लक्षे पण विकल्प थाय छे, शुद्धात्मानो
अनुभव थतो नथी. अभेद अनुभूतिरूप जे शुद्धआत्मा, तेने देखनारो शुद्धनय छे,
ते ज भूतार्थ छे, तेना ज अनुभवथी सम्यग्दर्शनादि थाय छे.
‘ज्ञानस्वरूप आत्मा छे, ’ एवा गुणगुणी भेदनो विकल्प, आत्मानो
अनुभव करवा जतां वच्चे आवशे खरो, पण तेनो आश्रय सम्यग्दर्शनमां नथी,
सम्यग्द्रष्टि ते विकल्परूप व्यवहारनुं शरण लईने अटकता नथी, पण तेनेय
छोडवा जेवो समजीने अंतरना शुद्धात्माने ते विकल्पथी जुदो अनुभवे छे. आवो
अनुभव ते ज वीतरागनो मार्ग छे. मोक्षने माटे आत्मामां आ सम्यग्दर्शनरूपी
शिलान्यास करवानी वात छे. भूतार्थद्रष्टिरूपी धु्रव पायो नांखीने आत्मामां जेणे
सम्यग्दर्शनरूपी शिला रोपी तेने अल्पकाळमां मोक्षना परम आनंदरूपी महेल
थशे.
समयसारनी पहेली गाथामां सर्वे सिद्धोने वंदन कर्यां......एटले पोतानी
ज्ञानदशाना आंगणे अनंत सिद्धोने बोलावीने स्वागत कर्युं; जे ज्ञाने अनंत
सिद्धोनो स्वीकार कर्यो ते ज्ञान रागथी जुदुं पडी गयुं छे. शरीरमां के रागमां
सिद्धोने पधरावी शकाय नहीं; पण साधक पोतानी ज्ञानपर्यायमां सिद्धोने पधरावे
छे; –कई रीते? पर्यायने रागादिथी भिन्न करीने अंतरना ज्ञानस्वभावमां एकाग्र
करी, त्यां ते पर्यायमां शुद्ध आत्मानो स्वीकार थयो, ने शुद्धात्माना स्वीकारमां
अनंत सिद्धभगवंतोनो स्वीकार ने सत्कार थयो. तेना आत्मामां सिद्धपद माटे
सम्यग्दर्शननुं शिलान्यास थई गयुं.
हे भाई! स्वभावथी एकत्वरूप ने परभावथी विभक्तरूप–एवो जे
शुद्धात्मा, तेनुं स्वरूप पूर्वे कदी तें सांभळ्‌युं नथी–विचार्युं नथी–अनुभव्युं