Atmadharma magazine - Ank 327
(Year 28 - Vir Nirvana Samvat 2497, A.D. 1971)
(Devanagari transliteration).

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: ८ : आत्मधर्म : पोष : २४९७
भगवान आत्मा एक ज्ञायकभाव छे; तेमां प्रमत्त–अप्रमत्त एवी जे
अहो, संतोनी परम कृपा छे के आ आत्माने तेओ ‘परमात्मा’ कहीने
एक माणस पासे नानपणथी ज लाखो–करोडो रूा. नी मूडी हती; पण तेनो
वहीवट तेना मामा करता हता, ने जरूर प्रमाणे थोडी थोडी रकम वापरवा
आपता, एटले ते पोताने थोडी मूडीवाळो गरीब मानी बेठो हतो. कोईए तेने
कह्युं: भाई! तुं गरीब नथी, तुं तो करोडोनी मिल्कतनो स्वामी छो! त्यारे ते कहे
के–ए मूडी तो मारा मामानी छे, तेओ आपे तेटलुं हुं वापरुं छुं. तेना हितस्वीए
कह्युं–अरे भाई! ए बधी मूडी तो तारी ज पोतानी छे, मामा तो तेनो मात्र
वहीवट करे छे, पण मूडी तो तारी छे.