Atmadharma magazine - Ank 327
(Year 28 - Vir Nirvana Samvat 2497, A.D. 1971)
(Devanagari transliteration).

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: पोष : २४९७ आत्मधर्म : ११ :
आत्माना द्रव्य–गुण–पर्यायमां
परना कारण–कार्यनो अभाव
गुजरातमां धर्मप्रभावना करीने मागशर सुद १४ ना
रोज सोनगढ पधार्या बाद ४७ शक्तिमांथी १४ मी शक्ति
उपरना प्रवचनमां आत्माना स्वभावना कोई अद्भुत
महिमापूर्वक गुरुदेवे कह्युं के–अरे, जेने आत्मानुं हित साधवुं
होय ने जन्म–मरणथी छूटीने मोक्षनो परम आनंद पामवो
होय–तेवा जीवने माटे आ वात छे. आत्मानी दरकार करीने
अंदरमां ऊतरे तेने समजाय एवी आ कोई अपूर्व वात छे.
आत्मानो स्वभाव केटलो महिमावंत छे–ए तो एमां जे लक्ष
करे तेने खबर पडे; बाकी एकली वातुं कर्ये आत्मानो पत्तो
खाय तेवो नथी.
आत्मानो स्वभाव जे ज्ञान–आनंदथी परिपूर्ण, ते अनंत शक्तिरूप
हवे आवा आत्मामां कारण–कार्यपणुं क््या प्रकारे छे? तो कहे छे के पोताना
रागादि भावो छे ते आत्मानी पर्यायमां छे, ते विभावपर्याय छे, पण
स्वभावधर्मना वर्णनमां ते न आवे; ज्ञानलक्षणथी लक्षित आत्मामां रागादि न आवे;