Atmadharma magazine - Ank 327
(Year 28 - Vir Nirvana Samvat 2497, A.D. 1971)
(Devanagari transliteration).

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: १२ : आत्मधर्म : पोष : २४९७
द्रव्य–गुण अने निर्मळ अवस्थाने ज आत्मा कह्यो, रागने आत्मा न कह्यो;
आत्मानो सुख–स्वभाव छे; ते सुखमां पण एवुं अकार्य–कारणपणुं छे के सुखनुं
सुख कहे के धर्म कहो; आत्मानी धर्मदशानुं कारण कोई बीजुं नथी; अने
भाई! तारो आत्मा ज आवो छे. परनी ओशियाळथी पोतानुं कार्य करे एवो
तुं नथी; अने परनो स्वामी थईने तेनुं कार्य करे एवो पण तुं नथी. तारुं कारण–कार्य
बधुं तारा ज्ञानस्वभावमां समाय छे. ज्ञानलक्षणथी लक्षित जे आत्मस्वभाव, तेमां ज
तारा बधा धर्मो समाय छे. तारी स्वाधीन निजशक्ति संतो तने देखाडे छे. तारा द्रव्य–
गुण–पर्यायनो कोई धर्म शुभरागवडे के बहारना निमित्तवडे प्राप्त थाय