Atmadharma magazine - Ank 327
(Year 28 - Vir Nirvana Samvat 2497, A.D. 1971)
(Devanagari transliteration).

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: १४ : आत्मधर्म : पोष : २४९७
भ ग वा न पा र स ना थ
(लेखांक ६ : गतांकथी चालु)
आपणा कथानायकनो जीव अंतिम
अवतारमां भगवान पारसनाथ तरीके अवतरीने
त्रेवीसमा तीर्थंकर थाय छे. पहेलांं मरूभूतिना
भवमां पोताना भाई कमठद्वारा पत्थरथी छूंदाईने
जेनुं मृत्यु थयुं, हाथीना भवमां सम्यग्दर्शन
पामीने आत्माने ओळखीने सर्पदंशथी जेनुं
समाधिमरण थयुं, अग्निवेग मुनिना भवमां
अजगर जेने गळी गयो, वज्रनाभीचक्रीना
भवमां भीले जेने बाण मार्युं, आनंदमुनिना
भवमां सिंह जेने खाई गयो, ते ज जीव आत्मानी
आराधनामां आगळ वधतां–वधतां हवे अंतिम
अवतारमां वाराणसीनगरीमां भरतक्षेत्रना
त्रेवीसमा तीर्थंकरपणे अवतरे छे......
(१०) अंतिम अवतार : त्रेवीसमा तीर्थंकर अने पंचकल्याणक
पारसप्रभु पीवडावजो चेतन आनंदरस, तुज आतम–स्पर्शन थतां जीवन बने
सरस; लोहा तो कंचन बने, आत्म बने परमात्म, ध्यानवडे तुजसम बनुं, बस! एकज
मारे आश.
भगवान पारसनाथ जगतनुं कल्याण करवा माटे अने पोतानी
आत्मसाधना पूरी करीने परमात्मा थवा माटे अंतिम अवतारमां अवतरवानी
तैयारी हती त्यारे आ भरतक्षेत्रमां चोथो आरो पूरो थवा आव्यो हतो. बावीस
तीर्थंकरो तो मोक्ष पधारी गया हता. नेमनाथ भगवान गीरनारथी मोक्ष पधार्या
तेने पण ८३७प० वर्ष वीती गया हता. अयोध्याथी थोडा गाउ दूर काशीदेशमां
गंगानदीना किनारे वाराणसी (बनारस) नगरी अत्यंत शोभती हती. आ
नगरीमां सातमा सुपार्श्वनाथ तीर्थंकर अवतरी चुकया हता, ने हवे पार्श्वनाथ
तीर्थंकरना अवतारनी तैयारी चालती हती.