मुनिवरो नगरीने पावन करता हता. (ते नगरीमां अत्यारे तो जैनोनी वस्ती घणी ज
घटी गई छे. जिनमंदिरो पण त्रणचार ज छे, अनेक कुमार्गो त्यां चाले छे. एक
गृहचैत्यमां लाखो रूपियानी किंमतना हीरामांथी कोतरेल पारसप्रभुनी प्रतिमा हती, ते
पण हमणां (वीर सं. २४९६मां) कोई ठग दर्शनना बहाने आवीने धोळे दिवसे
हाथमांथी झूंटवी गयो. बनारस शहेरथी दसेक किलोमीटर दूर श्रेयांसनाथ तीर्थंकरनुं
जन्मधाम सिंहपुरी (सारनाथ) छे, त्यां श्रेयांसनाथ स्वामीनुं मनोहर जिनालय छे;
तथा वीसेक किलोमीटर दूर चंद्रपुरीमां चंद्रप्रभ भगवाननुं जन्मधाम गंगाकिनारे
आवेल छे, त्यां पण प्राचीन जिनमंदिर छे. लेखके पू. श्री कहानगुरु साथे आ तीर्थोनी
यात्रा करेली छे, जेनुं वर्णन ‘मंगल तीर्थयात्रा’ पुस्तकमां आप वांची शकशो.)
आकाशमांथी दररोज करोडो रत्नोनी वृष्टि थती हती......पंदरमास सुधी ते रत्नवृष्टि
चाली; नगरजनो समजी गया के कोई महान मंगळ प्रसंगनी आ निशानी छे.
सम्यग्द्रष्टि हता, अवधिज्ञानना धारक हता ने वीतराग देव–गुरुना परम भक्त हता.
तेमना महाराणी ब्राह्मीदेवी (ब्रह्मदत्ता अथवा वामादेवी) पण अनेक गुणसंपन्न हता.
ते बंनेनो आत्मा तो मिथ्यात्वना मेलथी रहित हतो ने तेमनुं शरीर पण मळमूत्र
वगरनुं हतुं. अहा! तीर्थंकर जेवा पवित्र आत्मा ज्यां वसवाना होय त्यां मलिनता केम
रही शके? सिद्धांतमां कह्युं छे के तीर्थंकरने, तेमना माता–पिताने, चक्रवर्तीने, बळदेव–
वासुदेव–प्रतिवासुदेवने अने जुगलीआने मळमूत्र होतां नथी.
देख्या;
पछी बळद ने सिंह, लक्ष्मीदेवी, माळपुष्पतणी महा.