माता कहे : जगतमां जैनधर्मनो खूब फेलावो थाय एवी भावना थाय छे.
पांचमी देवी कहे : हे माता! आकाशमांथी आ रत्नो केम वरसे छे?
माता कहे : देवी! मारो पुत्र आ जगतमां सम्यग्दर्शनादि वीतरागीरत्नोनी
करवानुं महाभाग्य अमने मळे छे. ए नानकडा भगवानने अमे पारणीए
झुलावशुं, एना हालरडां गाशुं, अने होंशेहोंशे तेडशुं ने एने देखीदेखीने आत्मानो
धर्म पामशुं.
मधुरी आत्मस्पर्शी वाणी खरती हती–जाणे के तेमना मुखद्वारा अंदरमां बेठेला
पारसनाथ भगवान ज बोलता होय! जेम महेलमां झगमगतो दीवडो आखा
महेलने प्रकाशमान करे छे तेम माताना गर्भगृहमां रहेलो ज्ञानदीवडो त्रण ज्ञान
वडे माताना ज्ञानने पण उज्वळ करतो हतो. गर्भमां रहेला ज्ञानवंत भगवान ते
वखते पण जाणता हता के मारुं चैतन्यतत्त्व आ देहना संयोगथी तद्न जुदुं छे;
चेतनामय भाव ज हुं छुं. आम भगवान तो पोतानी चेतनाना आनंदमां
बिराजता हता. एम आनंदथी दिवसो पसार करतां करतां मागशर वद ११ आवी
ने मंगलवधाई लावी.