Atmadharma magazine - Ank 327
(Year 28 - Vir Nirvana Samvat 2497, A.D. 1971)
(Devanagari transliteration).

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: पोष : २४९७ आत्मधर्म : १७ :
चोथी देवीए पूछयुं: माता! तमने केवी भावना थाय छे?
माता कहे : जगतमां जैनधर्मनो खूब फेलावो थाय एवी भावना थाय छे.
पांचमी देवी कहे : हे माता! आकाशमांथी आ रत्नो केम वरसे छे?
माता कहे : देवी! मारो पुत्र आ जगतमां सम्यग्दर्शनादि वीतरागीरत्नोनी
वृष्टि करशे, तेनी निशानीरूपे आ रत्नो वरसी रह्यां छे.
छठ्ठी देवी कहे : माता, आ करोडो रत्नो वरसी रह्यां छे छतां ते कोई केम
लेतुं नथी?
माता कहे : देवी! पारसकुमार जे सम्यक्त्वादि रत्नो आपशे तेनी पासे आ
पचरंगी जडरत्नोनी कांई किंमत नथी.
सातमी देवी कहे : वाह माता! अमे पण एवा चेतनरत्नोने अंगीकार
करवा प्रभुना समवसरणमां आवशुं.
आठमी देवी कहे : अमे रुचकगिरिमां रहीए छीए; परंतु अमारा देवलोक
करतांय अमने अहीं वधु गमे छे, केमके अहीं आपनी अने बालतीर्थंकरनी सेवा
करवानुं महाभाग्य अमने मळे छे. ए नानकडा भगवानने अमे पारणीए
झुलावशुं, एना हालरडां गाशुं, अने होंशेहोंशे तेडशुं ने एने देखीदेखीने आत्मानो
धर्म पामशुं.
–आ प्रमाणे देवीओ माताजी साथे दररोज आनंदकारी चर्चा करती हती,
अने तीर्थंकर प्रभुनो महिमा होंशेहोंशे गाती हती. माताजीना श्रीमुखथी एवी
मधुरी आत्मस्पर्शी वाणी खरती हती–जाणे के तेमना मुखद्वारा अंदरमां बेठेला
पारसनाथ भगवान ज बोलता होय! जेम महेलमां झगमगतो दीवडो आखा
महेलने प्रकाशमान करे छे तेम माताना गर्भगृहमां रहेलो ज्ञानदीवडो त्रण ज्ञान
वडे माताना ज्ञानने पण उज्वळ करतो हतो. गर्भमां रहेला ज्ञानवंत भगवान ते
वखते पण जाणता हता के मारुं चैतन्यतत्त्व आ देहना संयोगथी तद्न जुदुं छे;
चेतनामय भाव ज हुं छुं. आम भगवान तो पोतानी चेतनाना आनंदमां
बिराजता हता. एम आनंदथी दिवसो पसार करतां करतां मागशर वद ११ आवी
ने मंगलवधाई लावी.