Atmadharma magazine - Ank 327
(Year 28 - Vir Nirvana Samvat 2497, A.D. 1971)
(Devanagari transliteration).

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: २० : आत्मधर्म : पोष : २४९७
भगवानने जन्मथी ज मति–श्रुत–अवधि त्रणज्ञान हतां, ने क्षायिक सम्यग्दर्शन
बालवय वीतावीने प्रभु युवान थया; तेमना देहनुं रूप अद्भुत हतुं; तेमना
युवान राजकुमारने देखीने एकवार माता–पिताए तेमने लग्न माटे अनुरोध
त्यारे पारसकुमार गंभीरताथी कहे छे के हे माता! ऋषभदेवनी वात जुदी हती;
हुं बधी वाते तेमनी बराबर नथी; तेमनुं आयुष्य तो घणुं लांबुं हतुं ने मारुं आयुष्य
तो सो वर्षनुं ज छे. अल्पकाळमां ज संयम धारण करीने मारे मारी आत्मसाधना पूरी
करवानी छे; तेथी मारे संसारना बंधनमां पडवुं ते उचित नथी.