Atmadharma magazine - Ank 327
(Year 28 - Vir Nirvana Samvat 2497, A.D. 1971)
(Devanagari transliteration).

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: २२ : आत्मधर्म : पोष : २४९७
तीर्थंकरोना मार्गमां प्रवेश : फत्तेपुरमां प्रवचनो
(पृष्ट १० थी चालु)
आत्माने सम्यग्दर्शन केम थाय तेनी आ वात चाले छे.
व्यवहारना अनेक प्रकारो छे, केमके तेमां सहज एक ज्ञायकभाव तिरोभूत छे, ने
दुनियामां घणा जीवो तो रागादि अशुद्धभावपणे ज आत्माने अनुभवे छे.
आत्मानो सहज एक ज्ञायकभाव, अने मोहादि अशुद्ध भावो सर्वथा एकमेक
आत्मानो सहज एक ज्ञायकभाव तो सदाय विद्यमान छे, पण एकांत रागने ज
अनुभवनार अज्ञानीनी द्रष्टिमां ते ज्ञायकस्वभाव देखातो नथी तेथी अज्ञानीने माटे ते
ढंकाई गयो छे एम कह्युं छे. तेनो कांई अभाव नथी थई गयो पण अज्ञानीनी द्रष्टिमां
ते देखातो नथी, तेने तो अशुद्धता ज देखाय छे. सहज एक ज्ञायकभावने देखवा माटे
तो शुद्धनयनी द्रष्टि जोईए. शुद्धनयमां ज एवी ताकात छे के सर्वे अशुद्ध–