Atmadharma magazine - Ank 327
(Year 28 - Vir Nirvana Samvat 2497, A.D. 1971)
(Devanagari transliteration).

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: पोष : २४९७ आत्मधर्म : ४१ :
वीतरागी–भेदज्ञान
* चैतन्यशक्तिना चमकारा *
,
सुखसत्त्व–एम अनंत गुणनुं सत्त्व छे, अनंत गुणनो बादशाह आत्मा, ते रागनो
भीखारी थईने भटके–ए तो कांई शोभे छे?
परमां; एनो भेद पडीने तारामां न आवे, तारामांथी भेद पडीने परमां न जाय,
वस्तुमां गुण–पर्यायना भेद पडे तो ते भेद पडीने पण तेनामां ज रहे, बीजामां न जाय.
अभेदवस्तुमां भेद कहेवो ते व्यवहार छे, पण ते भेद तेनामां ज रहे छे. आत्मामां
एना अनंतज्ञानादि गुणअपेक्षाए भेद पडे छे, छतां वस्तुरूपे आत्मा एक छे. आवुं
अनेकान्तस्वरूप छे. आत्माना निर्मळ गुण–पर्यायरूप सत्त्वमां रागादि परभावोनो
अभाव छे. –आवुं अस्ति–नास्तिरूप अनेकान्तपणुं पण स्वयमेव प्रकाशमान छे.
* आत्माने परनी साथे कार्य–कारणपणुं नथी, तो आत्मा परने जाणे छे के
नहीं? तथा आत्मा परने ज्ञेय थाय छे के नहीं? –तो कहे छे के हा; आत्मा परने जाणे
छे, पण तेथी कांई ते परनो कर्ता थई जतो नथी; अने परना ज्ञानमां आत्मा प्रमेय
थाय छे पण तेथी कांई ते परनुं कार्य थई जतो नथी. पोते प्रमाणरूप थईने परने जाणे,
अने पोते प्रमेयरूप थईने बीजाने जणाय–एवो तो आत्मानो स्वभाव छे; एटले
ज्ञाता ज्ञेयपणानो संबंध छे, पण तेथी विशेष बीजो कोई संबंध नथी.
* कोई कहे के बीजा आत्माने जाणी शकाय नहि; –तो कहे छे के एम नथी; बीजा
आत्माने पण जाणवानी आत्मानी ताकात छे. आत्मा पोते पोताने पण प्रत्यक्ष जाणे
छे ए वात प्रकाशशक्तिमां बतावी; अने आत्मा परने पण जाणे –ए वात अहीं लीधी.
तेमज आ आत्माने बीजा आत्मा पण (–जेनामां ते प्रकारनुं ज्ञान होय तेओ) जाणी
शके छे. –एम पण आमां आव्युं. ईन्द्रियोवडे बीजा आत्माओ आ आत्माने जाणी शके
नहीं; पण अतीन्द्रिय–ज्ञानथी तो आत्मा जरूर जणाय. आत्मा एवो नथी के कोईने
जणाय ज नहीं.
* आत्मा परने जाणे पण परने ग्रहे के छोडे नहीं. आत्मा परना ज्ञानमां
जणाय पण पोते परमां न जाय. अहो! वीतरागी भेदविज्ञान कोई अलौकिक छे.
(४७ शक्तिना प्रवचनमांथी वीर सं. २४९७)