Atmadharma magazine - Ank 327
(Year 28 - Vir Nirvana Samvat 2497, A.D. 1971)
(Devanagari transliteration).

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: ४२ : आत्मधर्म : पोष : २४९७
आत्मा जणाय एवो तेनो स्वभाव छे
–ईन्द्रियज्ञानथी नहीं,
अतीन्द्रियज्ञानथी ज जणाय
* आत्मा एटले सर्वज्ञपद.....
* सर्वज्ञस्वभावी आत्मामां जेम परने जाणवानो स्वभाव छे तेम पोते परना
प्रमाणज्ञानमां ज्ञेय थाय एवो पण तेनो स्वभाव छे. बीजाना ज्ञानमां पोते निमित्त थाय,
ने बीजा ज्ञेयोने पोताना ज्ञाननुं निमित्त बनावे–आवो ज्ञेय–ज्ञायकपणानो संबंध छे.
प्रश्न:– आत्मानो ज्ञेय थवानो स्वभाव छे तो ते ईन्द्रियज्ञानमां केम नथी जणातो?
उत्तर:– प्रमेय थवानो आत्मानो स्वभाव छे पण ते अतीन्द्रिय ज्ञानमां ज प्रमेय थया
तेवो छे, ईंद्रियज्ञान तेने प्रमेय करी शके नहीं. स्वसंवेदन ज्ञानपूर्वक प्रमेय
थाय एवो आत्मानो स्वभाव छे, –पण कोई अज्ञानी जीवो तेने न जाणे तेथी
कांई आनो प्रमेयस्वभाव मटी जतो नथी. वस्तु तो प्रत्यक्ष थाय एवी छे,
पण ईंद्रियज्ञानवाळो आंधळो तेने न जुए तेथी शुं? ज्ञानने आत्मा तरफ
वाळे तो आत्मा जणाय, पण ज्ञानने ईन्द्रिय तरफ वाळीने ते ज्ञानथी आत्मा
जणाय नहीं. ईंद्रियज्ञान आत्माने जाणवा माटे तो आंधळुं छे, ईंद्रियज्ञान
अतीन्द्रिय आत्माने प्रमेय करी शके नहीं. ईंद्रियज्ञाननो विषय पर तरफ
झुकवानो छे, अतीन्द्रिय आत्मानुं संवेदन तेमां थई शके नहीं. जे ज्ञान एटलुं
नबळुं अने पराधीन छे के ईंद्रियोना अवलंबन वगर स्थूळ पदार्थोने
जाणवानुं कार्य पण करी शकतुं नथी, ते पराधीन ईंद्रियज्ञान अतीन्द्रिय एवा
महान आत्मपदार्थने केम जाणी शके? अतीन्द्रिय–चेतनास्वरूप आत्मा छे ते
अतीन्द्रिय–चेतनावडे ज जणाय छे. –एवो तेनो अचिंत्य प्रमेयस्वभाव छे, ते
पोताथी ज छे, बीजाना कारणे नथी. तेमज सामे परचीज ज्ञेय छे माटे तेनुं
ज्ञान तेने कारणे थाय छे एम नथी; ज्ञेयोने जाणवानो आत्मानो पोतानो
स्वयंसिद्ध चेतकस्वभाव छे, ते परने लीधे नथी.
* जुओ, आवा आत्माने पोते पोताना स्वसंवेदनथी प्रमेय कर्यो त्यां
अनंतगुणनी जे निर्मळपर्याय प्रगटी ते निश्चयधर्म छे, ने ते पर्यायना
परिणमनमां रागा–