Atmadharma magazine - Ank 327
(Year 28 - Vir Nirvana Samvat 2497, A.D. 1971)
(Devanagari transliteration).

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: पोष : २४९७ आत्मधर्म : ४३ :
दिनो अभाव छे एटले निश्चयमां व्यवहारनो अभाव छे; –आवो अनेकान्त
स्वयमेव प्रकाशे छे. एटले रागादिवडे निश्चयधर्म प्रगटे ए वात रहेती नथी.
बधी शक्तिना निर्मळ परिणमनमां रागादि अशुद्धतानो अभाव ज छे. –एवो
ज आत्मानो स्वभाव छे, ने आवा स्वभावपणे जे परिणम्यो ते ज साचो
आत्मा छे.
* शुद्धनय अनुसार ज्यां आत्मानी अनुभूति थई त्यां ज्ञान अने राग जुदा पडी
गया. ज्ञान कहेतां अनंतधर्मनो अभेद पिंड आत्मा, तेनी निर्मळपरिणति
आत्मामां अभेद थई अने ते ज समये रागथी ते जुदी पडी गई. –आवा गुण–
पर्यायना समूह जेटलो आत्मा छे. द्रव्यमां त्रिकाळ व्यापक गुण, अने एक
समयनी व्यापक निर्मळपर्याय, ए बे थईने आखो आत्मा छे. तेना धर्मोनुं आ
वर्णन छे.
* अनंत धर्मोमांथी जाणवानुं काम ज्ञानमां ज छे. बीजा धर्मो (श्रद्धा–आनंद
वगेरे) ने पण ज्ञान ज जाणे छे. आनंद वगेरे बधा धर्मोने ज्ञाने जाण्या,
ज्ञानमां जेवुं जाण्युं तेवुं वर्णन वाणीमां आव्युं. आ रीते ज्ञाननो स्व–परप्रकाशी
स्वभाव छे.
* ज्ञानमां एक रागना कणियाथी पण लाभ माने तो तेणे आखा आत्माने
ज्ञानस्वभावी न मानतां, आखा आत्माने विकाररूप ज मानी लीधो छे. रागनुं
कर्तापणुं करवा जईश तो शुद्धगुणरूप आत्मा तारी द्रष्टिमां नहीं आवे. रागवडे
गुणनी प्राप्ति माने तेणे आखा आत्माने रागरूप ज मान्यो, गुणरूप आत्मा
तेणे न मान्यो. –आ मिथ्यात्व छे, तेनुं फळ मोटुं दुःख छे. अने रागथी भिन्न
अनंतगुणस्वरूप जे महान आत्मा–तेनी ओळखाणनुं फळ पण मोटुं एटले
अनंत ज्ञान–आनंदथी भरपूर एवुं सिद्धपद, ते आत्माने जाणवानुं फळ छे.
जाणवुं ते अनुभवसहित ज्ञाननी वात छे, श्रद्धा पण भेगी ज छे.
एक रे दिवस एवो आवशे...
आत्मा परम सुख पामशे...
देह छोडी मोक्षमां म्हालशे...