Atmadharma magazine - Ank 327
(Year 28 - Vir Nirvana Samvat 2497, A.D. 1971)
(Devanagari transliteration).

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: ४४ : आत्मधर्म : पोष : २४९७
जिनशासन एटले शुद्धआत्मानो अनुभव
*
(गुजरातना विहारमांथी पाछा फरतां छेल्ले मागशर सुद १२ ना
रोज अमदावाद मुकामे समयसारनी १प मी गाथा पर प्रवचन थयुं.
खाडिया जिनमंदिरमां अत्यंत भव्य–विशाळ आदिनाथप्रभु बिराजी
रह्या छे, सामे धर्मसभामां जैनशासननुं स्वरूप पू. श्री कहानगुरु
समजावी रह्या छे. एककोर सेंकडो वाहनोनी अवरजवरनो धमधमाट
चाली रह्यो छे, बीजीकोर चैतन्यस्वरूपना परम शांतरसनो प्रवाह
चाली रह्यो छे. शहेरनो घोंघाट बाजुमां ज होवा छतां, तेनाथी दूर दूर
कोई अगम्य प्रदेशमां लई जईने बहारना घोंघाट वगरनुं परम शांत
चैतन्य तत्त्व गुरुदेव बतावी रह्या छे.)
* * * * * *
ज्ञानानंद स्वरूप आत्मा छे तेना स्वभावने जुओ तो कर्मनुं बंधन तेमां नथी.
ज्ञानवडे अंतरमां आवा शुद्धआत्माने अनुभववो ते खरेखर जिनशासननो अनुभव
छे, जिनेन्द्रभगवानना उपदेशनो सार तेमां समाय छे; आवो अनुभव ते सम्यग्दर्शन
छे, ते भावश्रुत छे, ते ज्ञाननी अनुभूति छे; तेने ज सामान्यनो आविर्भाव कहेवाय छे,
ने ते भूतार्थधर्म छे, त्रिकाळी द्रव्यस्वभावने भूतार्थ कहेवाय छे, तेना त्रिकाळी गुणो
भूतार्थ छे, ने तेना आश्रये एकाग्र थयेली निर्मळपर्याय ते पण भूतार्थधर्म छे. आ रीते
आत्मामां शुद्ध द्रव्य–गुण–पर्याय तेने भूतार्थधर्म कह्यो. आवा शुद्धआत्माने देखे तेणे
जैनशासननुं खरूं स्वरूप जोयुं. पर्यायमां सम्यग्दर्शनादि भूतार्थ धर्म प्रगट्यो त्यारे तेमां
त्रिकाळ भूतार्थस्वभाव हुं छुं एम जाण्युं. भूतार्थ भाव वडे ज भूतार्थ–सत्य आत्मा
प्रत्यक्ष थाय छे, रागवडे ते प्रत्यक्ष थतो नथी. राग तो अभूतार्थ छे. शुद्ध द्रव्य–गुण ने
तेना तरफ वळेली पर्याय ते त्रणेमां रागनुं असत्पणुं छे एटले रागादिभावो अभूतार्थ
छे; शुद्धात्मानी अनुभूतिमां ते भावो प्रवेशी शकता नथी, बहार ज रहे छे. –आ रीते
शुद्धात्माने भूतार्थ कह्यो ने रागादिने अभूतार्थ