Atmadharma magazine - Ank 329
(Year 28 - Vir Nirvana Samvat 2497, A.D. 1971)
(Devanagari transliteration).

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: १६ : आत्मधर्म : फागण : २४९७
–ए मंगलदिवस हतो फागण वद १४
धरणेन्द्र अने पद्मावती जे उपसर्ग दूर करवा माटे चेष्टा करता हता ते कार्य
केवळज्ञानना प्रतापे आपोआप पूरुं थई गयुं. प्रभु उपसर्ग विजेता थईने केवळी
बन्या; केवळीने उपसर्ग होई नहीं. उपसर्ग पूरो थयो एटले धरणेन्द्र अने पद्मावतीनुं
काम पण पूरुं थयुं, भगवानना केवळज्ञाननो आवो दिव्य अतिशय देखीने तेओ
अतिशय आनंदपूर्वक पारसनाथप्रभुनी स्तुति करवा लाग्या; अहो प्रभो! आपना
केवळज्ञाननो कोई अद्भुत महिमा छे. हे देव! आप समर्थ छो, अमे आपनी रक्षा
करनारा कोण? प्रभो! आपना प्रतापे अमे धर्म पाम्या छीए, ने आपे संसारनां घोर
दुःखोमांथी अमारी रक्षा करी छे. प्रभो! आपना नाम साथे अमारुं नाम देखीने मूर्ख
जीवो आपने भूलीने अमने पूजवा लाग्या! पण पूजवायोग्य तो आपना जेवा
वीतरागीदेव ज छे. –आ प्रमाणे स्तुति करी. भगवानने केवळज्ञान थतां ईन्द्रोए
आवीने भगवाननी पूजा करी, ने आश्चर्यकारी दिव्य समवसरणनी रचना करी. जीवोनां
टोळेटोळां प्रभुनो उपदेश सांभळवा समवसरणमां आववा लाग्या.
आ बधी आश्चर्यकारी घटना देखीने संवरदेवना भाव पण पलटी गया, केवळी प्रभुनो
दिव्य महिमा देखीने तेने पण श्रद्धा जागी; तेनो क्रोध तो क््यांय चाल्यो गयो; पश्चात्तापथी तेणे
वारंवार प्रभु पासे पोताना अपराधनी माफी मांगी; अने स्तुति करवा लाग्यो;
अहो, देव! में विनाकारण आटलो
बधो उपसर्ग करवा छतां आपे तो जराय
क्रोध न कर्यो. क््यां आपनी महानता, ने क््यां
मारी पामरता! आवा महान ईन्द्रो जेवा
पण भक्तिथी जेनी सेवा करे छे एवा समर्थ
होवा छतां आपे मारा प्रत्ये क्रोध न कर्यो
अने क्षमा राखी. धन्य आपनी वीतरागता!
ए वीतरागता वडे आपे केवळज्ञानने साध्युं
ने आप परमात्मा थया. प्रभो! मारा
अपराध क्षमा करो. अज्ञानथी में क्रोध कर्यो ने
भवोभव आपना पर उपसर्ग कर्यो तेथी हुं
ज दुःखी थयो, ने में नरकादिनां घोर दुःख
(कमठना जीवने धर्मप्राप्ति)