जाण्यो छे. मारो आत्मा उपयोगस्वरूप छे, ते आ क्रोधथी जुदो छे–एम आपना प्रतापे
मने समजाय छे.
मटीने मोक्षनो साधक बन्यो. धरणेन्द्र अने पद्मावती पण सम्यग्दर्शन पाम्या; एटलुं ज
नहीं, महिपाल–तापसनी साथे जे सातसो कुलिंगी तापसो हता तेओ खोटो मार्ग
छोडीने धर्मनुं साचुं स्वरूप समज्या, अने भगवानना चरणोमां सम्यग्दर्शन सहित ते
बधाए संयम धारण कर्यो. कुगुरु मटीने तेओ साचा जैनगुरु बन्या. बीजा पण केटलाय
जीवो भगवानना उपदेशथी सम्यग्दर्शन पाम्या.
वात, शत्रुपणे एनो संग पण अंते तो हितनुं ज कारण थाय छे.
शरणे आववुं पड्युं: ‘पारस’ना संगे पापी पण परमात्मा बनी जाय छे.
सुधी पीडा करी पण अंते तो ते प्रभुना ज शरणमां आवीने धर्म पाम्यो. प्रभुना
आश्रय वगर ते क््यांथी सुखी थात? अहो, प्रभुनुं ज्ञान, प्रभुनी शांति, प्रभुनी
वीतरागी क्षमा, एनी शी वात! प्रभुनी गंभीरता समुद्रथी पण महान छे. हे
पारसजिनेन्द्र! बधा तीर्थंकरो समान होवा छतां आपनी जे विशेष प्रसिद्धि जोवामां
आवे छे ते तो एक कमठने लीधे! –ठीक छे, केमके अपकार करनारा शत्रुओ वडे ज
महापुरुषोनी ख्याति फेलाय छे! प्रभो! संवरदेवनी भयंकर विक्रिया वखते पण आप न
तो आपनी शांतिमांथी डग्या, के न कमठ उपर क्रोध कर्यो. आपे तो शांतचित्तवडे ज
कमठनी विक्रिया दूर करी, ने जगतने बताव्युं के साचो विजय क्रोध वडे नहीं पण
क्षमावडे ज पमाय छे. कमठना दुष्टभावने लीधे तेने ज नुकशान थयुं, आपने तो
आत्मसाधनामां कांई बाधा न थई. खरेखर, आपनो महिमा अने आपनी शांति