वगेरे क्रियाओ अटकी गई. सम्मेदशिखरनी
सौथी ऊंची टूंक उपर प्रभु ऊभा हता, त्रीजुं ने
बीजी ज क्षणे ऊर्ध्वगमन करीने मोक्ष
पधार्या.....शरीर छोडीने अशरीरी
थया.....संसारदशा छोडीने महा आनंदरूप
सिद्धदशारूप परिणम्या. भगवान श्रावणसुद
सातमे मोक्ष पधार्या हता तेथी तेने
‘मोक्षसप्तमी’ कहेवाय छे. पारसनाथ भगवान
स्टेशन पण ‘पारसनाथ’ तरीके आजे ओळखाय छे. पर्वतनी टूंकथी जे भगवान मोक्ष
नाम ‘सुवर्णभद्र’ पड्युं. वीर सं. २४८३ मां तथा २४९३ मां कहानगुरु साथे हजारो
यात्रिकोए ते सिद्धिधामनी यात्रा करी छे.
सम्मेदशिखरना स्वर्णभद्र पर सिद्धालयमां वास छे.
निजस्वरूपने साध्युं आपे चेतनरस भरपूर छे;
प्रभु प्रतापे आतम साधी हरखे हरि गुण गाय छे.
गुण तमारा देखी प्रभुजी मनडुं मुज ललचाय छे;
पारसप्रभु तुज चरणकमळमां वंदन वारंवार छे.
एक रूपियो. (पोस्टेज फ्री.....)