ः फागण : २४९७ आत्मधर्म : २१ :
अनंता जीवो आत्माने
जाणी–जाणीने मोक्ष पाम्या छे
तुं पण समजवा माटे
निरंतर–धून लगाड.
(गढडा : माह सुद ९ तथा १० (२४९७) स. गा. ३८)
हुं एक शुद्ध सदा अरूपी ज्ञान–दर्शनमय खरे,
कंई अन्य ते मारुं जरी परमाणुमात्र नथी अरे.
धर्मात्माने पोताना आत्मानो केवो अनुभव थयो तेनुं वर्णन आ गाथामां छे.
धर्मी जाणे छे के मारो आत्मा ज सर्वज्ञस्वभावी परमेश्वर छे; राग–द्वेषथी
विरक्त एवो जे ज्ञानस्वभाव छे तेनुं भान करीने, तेमां एकाग्रता वडे आत्मा पोते
परमेश्वर थाय छे. ए सिवाय बीजो कोई ईश्वर आ आत्माने कंई आपी द्ये–एम नथी.
अरे, पोतामां आनंदनां ने ज्ञाननां निधान भर्या छे पण जीव पोते पोताने
भूली गयो छे. सुखनी प्राप्ति तो अंतरना मंथन वडे थाय छे, शरीरना मंथन वडे
सुखनी प्राप्ति थती नथी. पण आवा आत्मानुं भान भूलीने अज्ञानी अनादिथी उत्मत्त
वर्ते छे. मोहने लीधे स्व–परनी भिन्नतानुं भान भूल्यो छे. अहीं तो हवे जेणे
आत्मानुं भान कर्युं छे. एवा धर्मीनी वात छे. ते जाणे छे के अहा! मारो प्रभु तो
मारामां छे, मारो आत्मा ज पोतानी प्रभुता सहित छे. चामडाना वींटाथी चैतन्यप्रभुने
ओळखवो ते तो मुर्खाई छे. मोहथी उन्मत जीवे पोतानी प्रभुताने भूलीने शुभ–अशुभ
बधा भावो कर्या छे, पण अतीन्द्रिय आनंदनी खाण तो पोतामां भरी छे तेनो
अनुभव कदी नथी कर्यो. भाई! अज्ञानरूपी अंधकारमां शोध्ये तारो आत्मा नहीं मळे;
ज्ञानना प्रकाशमां शोध तो ज आत्मा मळशे.
अवस्थामां अज्ञान छे, ते अज्ञानदशा जीवनी पोतानी छे. अने जीव पोते ज
साची समजण वडे ते अज्ञानदशा दूर करीने, पोतानी प्रभुताने अनुभवे छे. –आवी बे
प्रकारनी दशाओ जीवमां थाय छे; तेमां अज्ञानदशा छोडीने ज्ञानी थयेला जीवे पोताना
आत्मानो केवो अनुभव कर्यो–तेनी आ वात छे. भगवान आत्मामां एवो चमत्कारिक
परचो छे के एमां नजर करतां ज परम आनंद थाय छे. जगतना बीजा कोई पदार्थमां
एवो परचो नथी. आवा आत्मानो अनुभव करतां मोक्षमार्ग खुले छे.