: २२ : आत्मधर्म : फागण : २४९७
श्रीफळना सफेद–मीठा टोपरानी जेम आत्मा आनंदना मीठा रसथी भरेलो
जीवथी आवुं थई शकतुं हशे?
हा; आवुं कर्युं त्यारे तो जीवो मुक्ति पाम्या छे. अनंता जीवो आवा आत्माने
जाणी–जाणीने मोक्ष पाम्या छे; ने जे कोई जीवो मोक्ष पामशे तेओ आवा आत्माने
समजीने ज मोक्ष पामशे; बीजो कोई मोक्षनो पंथ नथी.
(–एक होय त्रणकाळमां परमात्मानो पंथ.)
अरे, तुं परमेश्वर पोते! आत्मामां ज्ञान–आनंदनो भंडार छे. जेम फूलझरणीमां
संसारना प्रसंगमां पण लोको प्रतिकूळता आवतां कोईने कोई प्रकारे समाधान
करी ल्ये छे. तो पोताना ज्ञानस्वभावना लक्षे आत्मामां एटली ताकात छे के अनंत
प्रतिकूळता वच्चे पण आत्मा समाधान करी शके छे. केमके सुख तो पोताना स्वभावमां
छे, सुख कांई बहारथी नथी लेवुं; एटले स्वभावना लक्षे गमे ते परिस्थितिमां जीव
सुखनो अनुभव करी शके छे.