छे. जेणे पोताना आत्माने अनुभवमां लीधो नथी ते बीजा धर्मात्माओने पण
ओळखी शकतो नथी. प्रत्यक्षपूर्वकनुं अनुमान साचुं होय छे. प्रत्यक्ष वगर
एकलुं अनुमान ते साचुं नथी.
वगरनुं ज्ञान ते खरेखर ज्ञान ज नथी, एटले ‘ज्यां सुधी मारो आत्मा मने
प्रत्यक्ष न थाय त्यां सुधी में खरेखर कांई ज जाण्युं नथी’ आम ज्यां सुधी
जीवने पोतानुं अज्ञानपणुं न भासे, ने बीजा परलक्षी जाणपणामां पोतानी
अधिकाई मानीने संतोषाई जाय–त्यां सुधी आत्मानो साचो मार्ग जीवने
हाथमां न आवे. अंतरमां परमस्वभावथी भरेलो भगवान आत्मा, तेमां
सन्मुख थये ज परमतत्त्वनी प्राप्ति थाय छे ने मोक्षमार्ग हाथमां आवे छे.
कर्या वगर, अज्ञानदशाना ऊंचामां ऊंचा शुभभाव पण ते कर्या, अगियार
अंगनुं जाणपणुं कर्युं, पण एनाथी आत्माना कल्याणनो मार्ग जरापण तारा
हाथमां न आव्यो. माटे ज्ञानने परविषयोथी भिन्न करीने स्वविषयमां जोड.
ईंद्रियज्ञानना वेपारमां एवी ताकात नथी के आत्माने स्वविषय बनावीने
जाणे. तुं परमात्मा, तारे पोते पोतानुं ज्ञान करवा माटे ईंद्रियनी के रागनी पासे
भीख मांगवी पडे एवो भीखारी तुं नथी. अहा, संतो कहे छे के तुं भीखारी
नथी पण भगवान छो!