Atmadharma magazine - Ank 329
(Year 28 - Vir Nirvana Samvat 2497, A.D. 1971)
(Devanagari transliteration).

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फागण : २४९७ आत्मधर्म : २७ :
* उपयोगमां विकार नथी. जेम सूर्यना प्रकाशमां मेल नथी तेम आत्माना
उपयोगप्रकाशमां रागादिरूप मलिनता नथी. उपयोग तो शुद्धस्वरूप छे. रागने
उपयोग जाणे भले, परंतु रागनी ने उपयोगनी एकता नथी पण भिन्नता छे.
ज्ञान ते राग नथी; राग ते ज्ञान नथी. ज्ञान ते आत्मा छे. उपयोगस्वरूपे
पोताना आत्माने अनुभवे तेमां रागादिनो अत्यंत अभाव छे; आवा
आत्मानो अनुभव ते ज सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्र छे. राग रागमां छे, ज्ञानमां
राग नथी. धर्मी पोताना ज्ञानपणे पोताने अनुभवे छे; ज्यां ज्ञान छे त्यां हुं छुं;
रागमां हुं नथी, ने ज्यां हुं छुं त्यां राग नथी. आवुं स्पष्ट भेदज्ञान करे त्यारे
जीवने धर्म थाय, एटले के सम्यग्दर्शन ने सम्यग्ज्ञान प्रगटे. आ सिवाय धर्म
थाय नहीं.
मोक्षने माटे तुरत करवा जेवुं
* अहा, चैतन्य भगवाननी आ वात! कया शब्दोथी ते कहेवी? एनो जे अंतरमां
भाव छे ते भावने लक्षमां ल्ये त्यारे चैतन्यभगवाननी किंमत समजाय.....बाकी
शब्दोथी गमे तेटलुं कहेवाय तोपण एनो पार पडे तेम नथी; ने शब्दोना लक्षे ते
समजाय तेवो नथी; शब्दातीत वस्तु, ईंद्रियातीत चैतन्यवस्तु–तेमां अंतरमां
उपयोगने लई जाय तो तेना परम आनंदनो अनुभव थाय. बाकी शब्दो तो
श्रवणेन्द्रियनो विषय, ने आत्मा तो अतीन्द्रियज्ञाननो विषय,–ईन्द्रियज्ञानवडे
ते पकडाय तेवो नथी. स्वयं ईन्द्रियोथी पार–रागथी पार थईने तारा आत्मामां
उपयोगने जोड...ते उपयोग राग वगरनो शुद्ध थयो, ईन्द्रियना अवलंबन
वगरनो अतीन्द्रिय थयो, प्रत्यक्ष थयो, आनंदरूप थयो. आवो
शुद्धोपयोगस्वभावी आत्मा ते साचो आत्मा छे. आवा आत्माने निर्णयमां
लईने अनुभव करवो ते ज मोक्षने माटे करवानुं छे. ते त्वराथी करवा जेवुं छे,
तेमां विलंब करवा जेवुं नथी. धर्मी आवी क्रियावडे मोक्षने साधे छे. आ सिवाय
रागनी क्रिया के शरीरनी क्रिया ते खरेखर आत्मानी क्रिया नथी, ते आत्मानी
धर्मक्रियाथी जुदी छे. जन्म–मरणनो अंत करवानी क्रिया तो अंतरना
शुद्धोपयोगमां समाय छे. रागथी पार अंतरना चिदानंद स्वभावने जाणीने धर्मी
जीव शुद्धोपयोगवडे अतीन्द्रिय आनंदनो स्वाद ल्ये छे, तेमां रागादिनो स्वाद
लेतो नथी. आवा स्वादनो अनुभव थाय त्यारे आत्माने जाण्यो कहेवाय, त्यारे
धर्म ने मोक्षमार्ग थाय. माटे पहेलामां पहेलुं आवुं आत्मज्ञान त्वराथी करवा
जेवुं छे.