ः फागण : २४९७ आत्मधर्म : २९ :
* सिद्धपदनी प्राप्तिनुं
मांगलिक *
(पृष्ठ ४थी आगळ)
अहो, मोक्षपुरीमां बिराजमान सिद्धभगवंतो, तेमने ज्ञानद्रष्टिवडे देखीने
मोक्षगामी साधकजीवो नमस्कार करे छे. पोताना आत्मामां एवो स्वभाव छे तेने
तो स्वानुभूतिवडे देखे छे; अने अनुभूति सहितना ज्ञानवडे सिद्धभगवाननुं
स्वरूप पण ओळखे छे. पहेलांं कह्युं हतुं के–
‘चेतनरूप अनूप अमूरत सिद्ध समान पद मेरो’
सिद्धभगवान पोताना महान सुखसमुद्रमां लीन छे. आवा सिद्ध भगवाननी
स्तुति छे, –पण तेने ओळख्या कोणे? के जेणे अंतरमां सिद्ध समान पोताना निजपदने
स्वानुभूतिवडे देख्युं तेणे ज सिद्ध भगवानने खरेखर ओळख्या. ज्ञानीओ ज सिद्ध
भगवानने खरेखर ओळखे छे. अहो, सिद्धसमान मारा स्वरूपने अंतरमां में देख्युं छे,
ज्ञानकळा मने प्रगटी छे, ने शिवमार्गने अमे साधी रह्या छीए–एवी निःशंकता पूर्वक
आ समयसार नाटक पं. बनारसीदासजीए रच्युं छे; काव्य द्वारा अध्यात्मरसनुं झरणुं
वहेवडाव्युं छे. समयसार द्वारा शुद्धात्मानुं घोलन करतां–करतां मोक्ष सधाय छे ने
भववास मटे छे. –आवुं आ समयसार ते तो मोक्षनुं शुकन छे.
सारूं मकान मळे त्यां लोको कहे छे के विसामानुं स्थान मळ्युं. अहीं तो कहे छे के
भाई! महान सुखनो समुद्र एवो आत्मा ते ज तारा विश्रामनुं स्थान छे, ते ज
आनंदनुं धाम छे. ‘आनंदस्वभावी आतमराम’ सिद्धभगवंतो पोताना आनंदनी
अनुभूतिमां लीन छे, तेमने याद करीने साधक पोताना आत्मामां ऊतारे छे. सिद्धप्रभु
तो कांई उपरथी नीचे नथी आवता, पण पोते पोताना अंतरमां सिद्ध जेवा पोताना
आत्मानी अनुभूति करी त्यां सिद्धपणुं पोतामां ज देखायुं. मारा आत्मामां ज सिद्धपणुं
भर्युं छे. आम स्वसन्मुख थईने सिद्ध भगवाननी स्थापना पूर्वक आचार्य भगवाने
समयसारनी अपूर्व शरूआत करी छे.
अहो, सिद्धदशा महान आनंदरूप.....तेना महिमानी शी वात! तेनी भावना
भावतां ज्ञानी कहे छे के–
सादि–अनंत समाधि सुखमां,
अनंत दर्शन–ज्ञान अनंत सहित जो......
–अपूर्व अवसर एवो क््यारे आवशे!