Atmadharma magazine - Ank 329
(Year 28 - Vir Nirvana Samvat 2497, A.D. 1971)
(Devanagari transliteration).

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: ३० : आत्मधर्म : फागण : २४९७
सादिअनंतकाळ सुधी अनंत ज्ञान ने अनंत सुखसहित शोभायमान एवा
सिद्धपदनी प्राप्तिनो अपूर्व अवसर अमने क््यारे आवे? एटले के स्वानुभूति वडे
एवुं सिद्धपद पोतामां देख्युं छे ने तेने अमे साधी रह्या छीए.
अहीं आत्मानी स्वानुभूति सहित सिद्धभगवंतोने ओळखीने नमस्कार
जेनामां सुख छे–तेने जाणतां सुख थाय छे.
जेनामां सुख नथी तेने जाणतां सुख थतुं नथी.
सुखथी भरपूर
चैतन्यलक्ष्मीने
लक्षमां ले
दुनियाना वैभव करतां आत्मानो वैभव जुदी
जातनो छे. अरे, संसारमां लक्ष्मी माटे जीवो केटला
दगा–प्रपंच ने राग–द्वेष करे छे! तेमां जीवन गुमावे छे
ने पाप बांधे छे. भाई, तारा स्वघरनी चैतन्यलक्ष्मी
महान छे, तेनी संभाळ करने! तेमां क््यांय दगा–प्रंपच
नथी, राग–द्वेष नथी, कोईनी जरूर नथी, छतां ते महा
आनंदरूप छे. बहारनी लक्ष्मी मळे तोपण तेमांथी सुख
मळतुं नथी. आ चैतन्यलक्ष्मी पोते महा आनंदरूप छे.
आवो अपार वैभव आत्मामां पोतामां भर्यो छे–एने
लक्षमां लेतां सुख छे.