एवुं सिद्धपद पोतामां देख्युं छे ने तेने अमे साधी रह्या छीए.
जेनामां सुख नथी तेने जाणतां सुख थतुं नथी.
दगा–प्रपंच ने राग–द्वेष करे छे! तेमां जीवन गुमावे छे
ने पाप बांधे छे. भाई, तारा स्वघरनी चैतन्यलक्ष्मी
महान छे, तेनी संभाळ करने! तेमां क््यांय दगा–प्रंपच
नथी, राग–द्वेष नथी, कोईनी जरूर नथी, छतां ते महा
आनंदरूप छे. बहारनी लक्ष्मी मळे तोपण तेमांथी सुख
मळतुं नथी. आ चैतन्यलक्ष्मी पोते महा आनंदरूप छे.
आवो अपार वैभव आत्मामां पोतामां भर्यो छे–एने
लक्षमां लेतां सुख छे.