Atmadharma magazine - Ank 330
(Year 28 - Vir Nirvana Samvat 2497, A.D. 1971)
(Devanagari transliteration).

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: चैत्र : २४९७ आत्मधर्म : ७ :
नानकडा बाळकोनी कलमे
(ता. ८–३–७१ ना रोज सोनगढ जैन विद्यार्थीगृहना
विद्यार्थीओ माटे संपादकद्वारा योजायेली ‘व्याख्यान–लेखन–
स्पर्धा’ मां बधा विद्यार्थीओए उमंगथी भाग लीधो हतो, अने
ए रीते अध्यात्मलेखननां संस्कार मेळव्या हता. ते बदल
धन्यवाद! श्रेष्ठ मार्क मेळवनार प्रथम पांच विद्यार्थीओ आ
प्रमाणे छे– (१) भास्कर पोपटलाल मार्क ८४; (२)
जयेशकुमार जयंतिलाल मार्क ८०; (३) मगनलाल भीमजी
मार्क ७८; (४) भरतकुमार वीरचंद मार्क ७७; (प) कमलेश
शांतिलाल मार्क ६प. लेखनमां भाग लेनार विद्यार्थीओने ४०
रूा. नी किंमतनां ईनामो अपाया हता. (आ ईनामनी रकम
गंगाबेन खुशालदास तरफथी आवेल हती.) १२–१४ वर्षनी
वयना नाना विद्यार्थीओनी कलमे लखायेल व्याख्यानमांथी
केटलोक भाग अहीं आपीए छीए.:)
* जे जाणे छे ते आत्मा छे; शरीर जड छे; शरीर अने आत्मानी भिन्नतानुं
भान ते भेदज्ञान छे. आवा भेदज्ञानथी आत्मलाभ थाय छे. अने शरीर तथा आत्माने
एक मानवा ते अभेदबुद्धिरूप मिथ्याज्ञान छे, तेनाथी संसार थाय छे.
* परथी भेद अने स्वथी अभेद एवुं सम्यग्ज्ञान छे.
* जे जाणे छे ते जीव छे; जीव ज्ञानानंदस्वरूप छे, ते अतीन्द्रिय आनंदमय छे.
शरीर अचेतन, जड, नाशवान छे. ते कांई जाणतुं नथी. लक्षणभेद द्वारा स्व अने परने
(चेतन अने अचेतनने) भिन्न जाणवा जोईए; तो ज धर्म थाय.
* अज्ञानी शरीरमां अहंबुद्धि करे छे.
* भगवान आत्मा चेतन छे, तेमां राग नथी. चेतनने चेतन, अने अचेतनने
अचेतन जाणीने पोताना चेतनस्वभावनो अनुभव करवो ते प्रज्ञा छे. ते मोक्षनुं कारण छे.
* जेम हंस दूध अने पाणीने जुदा पाडे छे, तेम मोक्षने साधवा माटे विवेकद्वारा
जीव अने अजीवने जुदा जाणवा जोईए.