: ६ : आत्मधर्म : चैत्र : २४९७
एटले शुद्धआत्मानो पक्ष. तेनो विरोध करनारा समयसारना विपक्षी जीवो तो
जगतनी जाळमां भटके छे. शुध्धात्मारूपी समयसारनो पक्ष करनारा जीवो शुद्धनयरूपी
पांखवडे ज्ञानगगनमां उडे छे एटले के निरालंबीपणे आकाश जेवा अपार
ज्ञानस्वभावने ते अनुभवे छे.
* आ समयसार तो शुद्ध सोना जेवुं निर्मळ छे. सोनामां एना अक्षर
कोतरावीए तोय महिमा पूरो न थाय. सो टचना सोना जेवा शुद्ध भावो आ
समयसारमां भर्या छे; समयसार आत्माना गंभीर भावोथी भरेलुं विराट स्वरूप छे.
आवा समयसारनुं श्रवण करतां, –एटले के तेना वाच्यरूप शुध्धआत्माना लक्षे
भावश्रवण करतां भव्य जीवने हैयानां फाटक खुल्ली जाय छे, सम्यग्दर्शनादि
अपूर्वभावो प्रगट थाय छे.
* आ समयसार–के जे भगवाननी वाणी छे, तेना भावोनी परीक्षा करीने
निर्णय करे तो आत्मानी स्वानुभूति थई जाय, एने पछी शंका न रहे के मारे हजी
अनंत भव हशे! ए तो निःशंक थई जाय के अहो! समयसारे तो न्याल कर्यो; अमे
संसारथी छूटा पडीने मोक्षना मार्गमां आवी गया....समयसारे तो अशरीरी
चैतन्यभाव बताव्यो. आवुं समयसार सांभळीने जेणे आत्मानी प्रीति करी तेने
मोक्षनां फाटक खुली गया..... चैतन्यना कबाट खुली गया.
* अरिहंतोनो पंथ......
ए ज अमारो पंथ *
तमारो पंथ क््यो? –पंथ एटले मार्ग; अरिहंत भगवंतोनो
जे मार्ग छे ते ज अमारो मार्ग छे, अमे अरिहंतोना पंथना छीए.
अरिहंतोनो पंथ एटले आत्माना आश्रये प्रगटेला
शुद्धरत्नत्रय; ते ज मार्गे अरिहंतो मोक्षमां गया छे, ने अमारो
पण ते ज मार्ग छे. आवा शुद्धरत्नत्रयरूप अरिहंतमार्ग सिवाय
बीजा कोई मार्गथी मुक्ति नथी–नथी.
शुद्धरत्नत्रय सिवाय बीजा कोई रागादि भावथी मोक्ष
थवानुं जे माने ते अरिहंतना मार्गने मानतो नथी, ते अरिहंतना
पंथमां नथी.