Atmadharma magazine - Ank 330
(Year 28 - Vir Nirvana Samvat 2497, A.D. 1971)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 12 of 41

background image
: चैत्र : २४९७ आत्मधर्म : ९ :
अने अंतरमां देहथी भिन्न रागथी भिन्न आत्माना आनंदनी सुगंध ले.
* चेतनस्वरूप भगवान आत्मा छे ते शरीरनो अने रागनो अकर्ता छे, ज्यां
सुधी रागने अने ज्ञानने एक अनुभवे छे त्यां सुधी जीवने धर्म थतो नथी.
* रागमां रोकायेलुं वीर्य ते तो अज्ञान छे; रागथी भिन्न आत्मानुं ज्ञान करवुं
तेमां अनंतुं वीर्य छे.
* राग अने पुण्य–पाप ते तो मेलां छे; भगवान आत्मा पवित्र छे.
* छए द्रव्यना गुण–पर्यायो पोतपोतामां छे. जीव अजीवना गुण–पर्याय
जुदेजुदा छे. कोई एकबीजाने करता नथी; आम सर्वज्ञ भगवानना आगममां कह्युं छे.
* राग ते ज्ञाननुं काम नथी.
* परथी भिन्न पोताना स्वरूपनो विचार करवो.
* राग ते अंधकार छे, तेमांथी ज्ञानप्रकाश आवतो नथी. ज्ञानसूर्यमां रागरूपी
अंधकार नथी. ज्ञानप्रकाशनो अनुभव थाय त्यां रागनुं अंधारुं दूर थाय छे.
* ज्ञानमां राग नथी; रागमां ज्ञान नथी.
* मिथ्यात्व ते मोटुं पाप छे. चेतन–अचेतनने जुदा जाणवा ते सम्यग्ज्ञान छे.
शरीर अने आत्माने एक मानवा ते अज्ञान छे; अज्ञान मोटुं पाप छे.
* शरीरनुं हालवुं चालवुं बोलवुं ते जडनी क्रिया छे; ते आत्मानी क्रिया नथी.
आत्मानी क्रिया तो ज्ञान छे.
* सूर्यनो प्रकाश थतां अंधकारनो नाश थाय छे, तेम सम्यग्ज्ञाननो सूरज उगतां
मिथ्यात्वनो अने रागनो नाश थाय छे.
* शरीरने पोतानुं माननार जीव आत्माने साधी शकतो नथी. देहथी भिन्न
आत्माने जाणनारा जीवो आत्माना साधक थईने सिद्धपदने साधे छे.
* शरीरथी भिन्न चैतन्यने जाणे ते शरीर रहित पदने पामे.
* एक आत्मा, ते पोतानुं काम करे अने जडनुं काम पण करे–एम बे कामने करे
नहीं. आत्मा पोताना ज्ञाननुं काम करे पण जडनुं काम करे नहीं; आम भिन्नता छे.
* आत्मा जडथी जुदो, अखंड आनंदस्वरूप छे. तेनुं ज्ञान करतां साधकपणुं
आवे छे. व्यवहारना आश्रयथी, के रागथी साधकपणुं आवतुं नथी.
* आ तो भगवाननो मार्ग छे. आमां