: चैत्र : २४९७ आत्मधर्म : ११ :
सम्यग्दर्शन आठ अंगनी कथा
समकितसहित आचार ही संसारमें ईक सार है।
जिनने किया आचरण उनको नमन सो–सो वार है।।
उनके गुणोंके कथनसे गुणग्रहण करना चाहिये।
अरु पापियोंका हाल सुनके पाप तजना चाहिये।।
(२) निःकांक्ष–अंगमां प्रसिद्ध अनंतमतीनी कथा
(निःशंकताअंगमां प्रसिद्ध अंजनचोरनी कथा गतांकमां
आपे वांची; हवे बीजा निःकांक्षअंगमां प्रसिद्ध अनंतमती
सतीनी कथा आप अहीं वांचशो.
अनंतमती! चंपापुरीनां प्रियदत्त शेठ तेना पिता, अने अंगवती तेनी माता,
तेओ जैनधर्मना परम भक्त अने वैरागी धर्मात्मा हता, तेमना उत्तमसंस्कार
अनंतमतीने पण मळ्या हता.
अनंतमती हजी तो सात–आठ वर्षनी बालिका हती ने ढींगला–ढींगलीनी रमत
रमती हती; एवामां एकवार अष्टाह्निका वखते धर्मकीर्ति मुनिराज पधार्या; अने
सम्यग्दर्शनना आठ अंगनो उपदेश आप्यो; तेमां निःकांक्षगुणनो उपदेश आपतां कह्युं
के–
हे जीवो! संसारना सुखनी वांछा छोडीने आत्माना धर्मनी आराधना करो.
धर्मना फळमां जे संसारसुखनी ईच्छा करे छे ते मूर्ख छे. सम्यक्त्व के व्रतना बदलामां
मने देवनी के राजनी विभूति मळो–एम जे वांछा करे छे, ते तो संसारसुखना बदलामां
सम्यक्त्वादि धर्मने वेची दे छे, छाशना बदलामां रत्नचिंतामणी वेची देनार जेवो ते
मूर्ख छे. अहा, पोतामां ज चैतन्य–चिंतामणि जेणे देख्यो ते बाह्य विषयोनी वांछा केम
करे?